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Hathras Case: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने CBI से पूछा- कितने समय में पूरी होगी हाथरस कांड की जांच

Hathras Case इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सीबीआइ से पूछा है कि हाथरस कांड की जांच कितने दिनों में पूरी हो जाएगी। कोर्ट ने इस प्रकरण की सुनवाई दो नवंबर को की थी और आदेश सुरक्षित कर लिया था जिसे गुरुवार को जारी किया गया।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Thu, 05 Nov 2020 09:23 PM (IST)Updated: Thu, 05 Nov 2020 09:23 PM (IST)
Hathras Case: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने CBI से पूछा- कितने समय में पूरी होगी हाथरस कांड की जांच
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीबीआइ से पूछा है कि हाथरस कांड की जांच कितने दिनों में पूरी हो जाएगी।

लखनऊ, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सीबीआइ से पूछा है कि हाथरस कांड की जांच कितने दिनों में पूरी हो जाएगी। कोर्ट ने इस प्रकरण की सुनवाई दो नवंबर को की थी और आदेश सुरक्षित कर लिया था, जिसे गुरुवार को जारी किया गया। कोर्ट ने अगली सुनवाई पर विवेचना की स्टेटस रिपोर्ट भी तलब की है।

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जस्टिस पंकज मित्थल और जस्टिस राजन रॉय की बेंच ने हाथरस मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने गुरुवार को जारी आदेश में दो नवंबर को हुई सुनवाई प्रक्रिया को भी दर्ज किया है। कोर्ट के समक्ष आरोपितों की ओर से एक प्रार्थना पत्र मामले में खुद को पक्षकार बनाए जाने के संबंध में भी दाखिल किया गया। कोर्ट ने इसे निस्तारित करते हुए कहा है कि वर्तमान मामले में कोर्ट दो बिंदुओं पर सुनवाई कर रही है, पहला सर्वोच्च न्यायालय के 27 अक्टूबर के आदेश के अनुपालन में विवेचना की मॉनीटरिंग व दूसरा मृतका के अंतिम संस्कार के मुद्दे पर।

कोर्ट ने कहा कि इन दोनों ही बिंदुओं पर आरोपितों को सुने जाने का अधिकार नहीं है, लिहाजा वे इस स्तर पर आवश्यक पक्षकार नहीं हैं। हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी प्रकार से उनके अधिकार प्रभावित होते हैं या प्रभावित होने की संभावना होती है तो उन्हें सुनवाई का अधिकार प्राप्त होगा। आरोपितों की ओर से एक अन्य प्रार्थना पत्र मीडिया ट्रायल को लेकर था जिसे भी कोर्ट ने निस्तारित कर दिया। कोर्ट ने कहा कि हमने 12 अक्टूबर के अपने आदेश में मीडिया व राजनीतिक दलों को निर्देशित किया है कि वे ऐसा कोई विचार न व्यक्त करें जिससे पीडि़ता के परिवार अथवा आरोपितों अधिकारों पर विपरीत प्रभाव पड़े।

कोर्ट ने इसके अतिरिक्त किसी भी निर्देश की आवश्यकता नहीं पाई। हालांकि यह जरूर स्पष्ट किया कि यदि पीड़िता के परिवार अथवा आरोपितों के अधिकारों को या विवेचना को प्रभावित करने वाली कोई बात आती है तो हम उस पर अवश्य संज्ञान लेंगे।

जिलाधिकारी हाथरस प्रवीण कुमार के संबंध में कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि विवेचना के दौरान क्या उन्हें हाथरस में बनाए रखना निष्पक्ष और उचित है। कोर्ट ने कहा कि हमारे समक्ष भी जो प्रक्रिया चल रही है, उससे वह भी जुड़े हुए हैं। क्या यह उचित नहीं होगा कि सिर्फ निष्पक्षता व पारदर्शिता के लिए इन प्रक्रियाओं के दौरान उन्हें कहीं और शिफ्ट कर दिया जाए। इस पर राज्य सरकार के अधिवक्ता ने अगली सुनवाई पर सरकार का रुख स्पष्ट करने की बात कही है।


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