बच्चे चार घंटे तक ऑनलाइन स्क्रीन पर वक्त गुजार रहे हैं तो हो जाएं सर्तक, मोबाइल व लैपटॉप से चिपके रहने की लत बना रही मानसिक रोगी
बहुत से बच्चे तो छह से 10 घंटे तक ऑनलाइन स्क्रीन पर वक्त गुजार रहे हैं। ऐसे बच्चों को फिजिकल गेम में सक्रिय करने की जरूरत है। ऑनलाइन काम करते समय भी बीच-बीच में कुछ अंतराल पर मोबाइल व लैपटॉप की स्क्रीन से ब्रेक लेना जरूरी है।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। अगर आपके बच्चे ऑनलाइन क्लास के अतिरिक्त मोबाइल-लैपटॉप या कंप्यूटर की स्क्रीन से चिपके रहते हैं तो आपको सतर्क हो जाने की जरूरत है। विशेषज्ञों के अनुसार चार घंटे से अधिक किसी भी स्क्रीन पर वक्त गुजारना बच्चों को मानसिक रोगों की तरफ धकेल रहा है। बहुत से बच्चे तो छह से 10 घंटे तक ऑनलाइन स्क्रीन पर वक्त गुजार रहे हैं। ऐसे बच्चों को फिजिकल गेम में सक्रिय करने की जरूरत है। ऑनलाइन काम करते समय भी बीच-बीच में कुछ अंतराल पर मोबाइल व लैपटॉप की स्क्रीन से ब्रेक लेना जरूरी है।
बलरामपुर अस्पताल के मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. देवाशीष शुक्ला ने विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर सभी अभिभावकों को इसे खतरे के प्रति अगाह किया। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में पढ़ाई ऑनलाइन हो जाने से बच्चों को मोबाइल व लैपटॉप आसानी से उपलब्ध होने लगा। ओपीडी में अभिभावक लगातार ऐसी शिकायतों के साथ अस्पताल पहुंच रहे हैं कि उनका बच्चा मोबाइल लैपटॉप का आदी हो गया है। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका विपरीत असर हो रहा है। वह चिड़चिड़े, जिद्दी व आक्रामक हो रहे हैं। आंखें भी कमजोर हो रही हैं। ऐसे बच्चे कमरे में एकांत में रहना पसंद कर रहे हैं। ऐसे बच्चों की काउंसिलिंग कराने की जरूरत है। सीएमओ डॉ. मनोज अग्रवाल ने मानसिक तनाव से बचने के लिए हमेशा खुश रहने व मित्रों से तनाव वाली बातें साझा करने की आदत डालने को कहा। कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. आरके चौधरी ने कहा कि यदि बच्चा अपने कमरे में किसी को दाखिल नहीं होने दे रहा है। कमरे की साफ-सफाई में आनाकानी कर रहा है तो यह भी मानसिक रोग की शुरुआत हो सकती है।
मनोरोग परामर्शदाता डॉ. पीके श्रीवास्तव ने कहा कि तनाव जब अवसाद में बदल जाता है तो व्यक्ति में आत्महत्या के विचार आते हैं।