मां का बुना स्वेटर कभी छोटा नहीं पड़ता...Actor अनुपम खेर ने शेयर की लखनऊ के कवि की ये कविता, आप भी पढ़ें
लखनऊ के हास्य व्यंग्य कवि हैं पंकज प्रसून। सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही इनकी कविताएं। अभिनेता अनुपम खेर ने इसे पूरे भावों के साथ अपनी आवाज में रिकॉर्ड किया। सोशल मीडिया अकाउंट पर भी किया शेयर।
लखनऊ [दुर्गा शर्मा]। सोशल मीडिया पर आजकल लखनऊ के हास्य व्यंग्य कवि पंकज प्रसून की कविता मां का बुना स्वेटर...खूब वायरल हो रही है। हो भी क्यों न, आखिरकार दिग्गज अभिनेता अनुपम खेर ने इसे पूरे भावों के साथ अपनी आवाज में रिकॉर्ड किया है। अनुपम खेर ने इसे अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर भी शेयर किया है।
आपको बता दें, इससे पहले भी अनुपम खेर पंकज प्रसून की एक कविता लड़कियां बड़ी लड़ाका होती हैं...को अपनी आवाज में रिकॉर्ड कर चुके हैं। इस कविता ने भी सोशल मीडिया पर खूब धमाल मचाया था। पंकज प्रसून कहते हैं कि ये उनके लिए सौभाग्य की बात है कि लीजेंडरी एक्टर को उनकी कविताओं में संवेदना और मार्मिकता दिखती है। मां का बुना स्वेटर...कविता लिखते समय मेरी आंखें नम हो गई थीं, अनुपम साहब ने भी उसी भावुकता के साथ कविता काे पढ़ा, मेरे लिए ये मां के आशीर्वाद जैसा ही है।
पढ़िए मां का बुना स्वेटर...
मां का बुना स्वेटर कभी छोटा नहीं पड़ता..
मेरी अलमारी आज
कोट, शेरवानी, जैकेट सदरी ब्लेजर से भरी पड़ी है
जो साल भर में पुराने लगने लगते हैं
लेकिन इन्हीं सब के बीच एक स्वेटर भी है
जो सालों के बाद भी नया है
जब भी पहनता हूं, यह और नया हो जाता है
यह मां के हाथ का बुना स्वेटर है
कपड़े जवानी के बाद भी छोटे पड़ते हैं
जब लम्बाई की जगह चौड़ाई बढ़ती है
लेकिन मां का बुना स्वेटर कभी छोटा नहीं पड़ता
यह एकदम तुम्हारी बाहों की तरह होता है
जिसकी परिधि की कोई सीमा ही नहीं होती
जब कड़ाके की ठंड पड़ती है
और ये जैकटें ठंड को नहीं रोक पाती
तो तुम्हारा स्वेटर पहन कर निकलता हूं
और तुम्हारे लगाये फंदों में सर्दी झूल जाती है
झूले भी क्यों न
ठंड को भी पता है कि मां ने यह स्वेटर कांपते हुए बुनी है
आज जब रिश्तों को बिखरते देखता हूं
तो तुम्हारा स्वेटर बुनना बहुत याद आता है
माँ के हाथ का बुना स्वेटर: मेरे बचपन की यादों से जुड़ी एक बहुत ख़ूबसूरत याद है घंटों माँ को स्वेटर बुनते देखना!! तो जब लखनऊ के लेखक @prasun_pankaj ने ये कविता भेजी तो मेरी माँ की बहुत सारी यादें ताज़ा हो गई है। इसे देखें, सुनें और शेयर करें!! ख़ासकर अपनी प्यारी माँ के साथ।🙏😍🌺 pic.twitter.com/90A2LFwxmo— Anupam Kher (@AnupamPKher) November 24, 2020
एहसासों का ऊन लेकर
ममता और धैर्य की दो सलाइयों से तुम जीवन को
बुन देती थी
तुम स्वस्थ रहो या बीमार
घर में रहो या बाजार
ये सलाइयां थमने का नाम ही नहीं लेती थीं.
मां ने उस दिन के बाद जहाज से सफर ही नहीं किया
जिस दिन उनकी सलाइयां पर्स से निकाल ली गईं थीं
वह जहाज पर भी स्वेटर बुनना चाहती थीं
सलाइयों को ऊंचाइयों का अनुशासन नहीं भाता
मैं हर विशेष मौके पर इस स्वेटर को पहनता हूं
जिसके कुछ फंदे उधड़ गये हैं
एक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में सूटबूट टाई वाले
मुझे देखकर हंस रहे थे,मैं उन पर हंस रहा था
शायद उनकी माओं ने उनके लिए स्वेटर नहीं बुनी होगी
मां की स्वेटर ने सिखाया है
बने हुए और बुने हुए में बड़ा अंतर होता है
बना हुआ सलीके से बनता तो है
लेकिन उधड़ता बेतरतीब है
बुना हुआ उधड़ता भी सलीके से है
मां की स्वेटर जब बुन जाती थी
वो मुझे पहना कर इठलाती थी
मां आज भी तुम ठीक वैसे ही इठलाती होगी
तुमने सर ऊंचा करना सिखाया है
शायद इसीलिए स्वेटर में कॉलर नहीं लगाया है
एक राज की बात बताऊं
जब मैं यह स्वेटर पहन कर बेटी को गले लगाता हूं
तुमको आत्मा के बेहद करीब पाता हूं
लड़कियां बड़ी लड़ाका होती हैं कविता
इससे पहले अनुपम खेर टाइम्स स्क्वायर न्यूयॉर्क से पंकज की लड़कियां बड़ी लड़ाका होती हैं...कविता पढ़ चुके हैं...
“लड़कियाँ बड़ी लड़ाका होती है...” Here is my tribute to every woman, specially in our side of the world, in the form of a poem (author unknown). I recorded this poem in the crowded #TimesSquare in NY to scream out the poets words & my emotions. Jai Ho!🙏 #InternationalWomensDay pic.twitter.com/mGzLTL6U9J— Anupam Kher (@AnupamPKher) March 8, 2020
मैंने देखा
एक लड़की महिला सीट पर बैठे पुरुष को
उठाने के लिए लड़ रही थी
तो दूसरी लड़की
महिला - कतार में खड़े पुरुष को
हटाने के लिए लड़ रही थी
मैंने दिमाग दौड़ाया
तो हर ओर लड़की को लड़ते हुए पाया
जब लड़की घर से निकलती है
तो उसे लड़ना पड़ता है
गलियों से राहों से
सैकड़ों घूरती निगाहों से
लड़ना होता है तमाम अश्लील फब्तियों से
एकतरफा मोहब्बत से
ऑटो में सट कर बैठे किसी बुजुर्ग की फितरत से
उसे लड़ना होता है
विडंबना वाले सच से
कितनों के बैड टच से
वह अपने आप से भी लड़ती है
जॉब की अनुमति न देने वाले बाप से भी लड़ती है
उसे हमेशा यह दर्द सताता है
चार बड़े भाइयों के बजाय पहले मेरा डोला क्यों उठ जाता है
वह स्वाभिमान के बीज बोने के लिए लड़ती है
खुद के पैरों पर खड़े होने के लिए लड़ती है
वह शराबी पति से रोते हुए पिटती है
फिर भी उसे पैरों पर खड़ा करने के लिए लड़ती है
वह नहीं लड़ती महज शोर मचाने के लिए
वह लड़ती है चार पैसे बचाने के लिए
वह अपने अधिकार के लिए लड़ती है
सुखी परिवार के लिए लड़ती है
वह सांपों से चील बनके लड़ती है
अदालत में वकील बन के लड़ती है
वह दिल में दया, ममता, प्यार लेकर लड़ती है
तो कभी हाथ में तलवार लेकर लड़ती है
वह अमृता बन के पेन से लड़ती है
तो अवनी बनके फाइटर प्लेन से लड़ती है
कभी कील बनके लड़ती है कभी किला बनके लड़ती है
कभी शर्मीली तो कभी ईरोम शर्मिला बनके लड़ती है
कभी नफरत में कभी अभाव में लड़ती है
तो कभी इंदिरा बन चुनाव में लड़ती है
प्यार में राधा दीवानी की तरह लड़ती है
तो जंग में झांसी की रानी की तरह लड़ती है
कभी शाहबानो बन पूरे समाज से लड़ती है
तो कभी सावित्री बनके यमराज से लड़ती है
कभी रजिया कभी अपाला बनके लड़ती है
कभी हजरत महल कभी मलाला बनके लड़ती है
कभी वाम तो कभी आवाम बनके लड़ती है
और जरूरत पड़े तो मैरीकॉम बनके लड़ती है
कभी दुर्गावती कभी दामिनी बनकर लड़ती है
अस्मिता पर आंच आये तो
पन्नाधाय और पद्मिनी बनके लड़ती है
उसने लड़ने की यह शक्ति यूं ही नहीं पाई है
वह नौ महीने पेट के अंदर लड़ के आई है
सच में लड़कियां बड़ी लड़ाका होती हैं...।।