दीनदयाल एक संस्मरणः राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखा में मिला जीवन का सबक
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक के तौर पर काम करने वाले पं.दीनदयाल उपाध्याय ने जो सबक दिया, वह जीवन का अंग बन गया।
लखनऊ (जेएनएन)। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक के तौर पर काम करने वाले पं.दीनदयाल उपाध्याय ने जो सबक दिया, वह जीवन का अंग बन गया। 1950 में भारतीय जन संघ की स्थापना के साथ ही उसके कार्य की जिम्मेदारी उन्हें दी गई। लखनऊ के पूर्व सांसद और वर्तमान में बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन भी उनके साथ बिताए दिनों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहाकि उनके जैसा सहृदयी व्यक्ति शायद ही इस संसार में दुबारा जन्म लें। शाखा में उनसे मेरी पहली मुलाकात हुई और उसमें जीवन को जो सबक मिला, वह मुझे कभी नहीं भूलता। शाखा में खेलकूद मुख्य आकर्षण हुआ करता था। अनुशासन को प्राथमिकता दी जाती थी और इसका पालन न करने वालों को शाखा से बाहर कर दिया जाता था।
उन दिनों की बात
एक बार कुछ अनुशासनहीन संघ की शाखा से बाहर किए गए तो वे बाहर से ईंट-पत्थर फेंकने लगे। एक पत्थर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के पैर में लगा और वह जख्मी हो गए। चोट लगी तो हम लोगों ने उपद्रवियों को पकड़ कर उनके सामने पेश किया। एक दूसरे के बीच गरमा-गरम बहस होने लगी। आपस में झगड़ा शुरू हो गया। पत्थर मारने वाले की हम सब मिलकर पिटाई करने लगे। मैने जब पीटना शुरू किया तो वह मुझे ही डॉटने लगे। उन्होंने कहाकि इसे समझाओ, यही कल का अच्छा स्वयं सेवक बन सकता था। बस फिर क्या था, उनका यह सबक मेरे जीवन का अंग बन गया। इसके बाद से वह मेरे परिवार के अंग बन गए। पेट मेंं गड़बड़ी की वजह से उन्हें वैद्य ने मट्ठे का सेवन करने की सलाह दी थी। वह मेरे घर के पास ही रहते थे। मेरे घर कई गाएं थीं और मेरी मां उनके लिए मट्ठे का इंतजाम रखती थीं। मैने देखा कि बीमारी के बावजूद पं.दीनदयाल जी लिखते रहते थे। उसी दौरान कुछ नई पुस्तकें आईं थी। पढऩे के लिए उन्होंने दो-तीन पुस्तकें लीं और कहा कि मैं इन्हें ले जाना चाहता हूं। फिर बोले मैं इन्हें लौटकर वापस कर दूंगा। मुझे नहीं पता था कि इसके बाद उनसे मुलाकात नहीं हो पाएगी। उनके जाने के दूसरे दिन उनकी हत्या का समाचार मिला तो दिल मानने को तैयार नहीं था। वह हमारी शादी में भी शामिल हुए थे। टंडन कहते हैं कि पं.दीनदयाल उपाध्याय चौक में ही काली जी मंदिर के सामने रहते थे और मेरा घर भी पास में था तो मुलाकात हो जाती थी।