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इधर उखड़ रहीं सांस, उधर हर माह 15 लाख का चूना

-केजीएमयू की फोटो---- -केजीएमयू प्रशासन की लापरवाही से बंद 50 वेंटीलेटर -रखे-रखे बीत

By JagranEdited By: Published: Fri, 09 Feb 2018 07:03 PM (IST)Updated: Fri, 09 Feb 2018 07:29 PM (IST)
इधर उखड़ रहीं सांस, उधर हर माह 15 लाख का चूना
इधर उखड़ रहीं सांस, उधर हर माह 15 लाख का चूना

-केजीएमयू की फोटो----

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-केजीएमयू प्रशासन की लापरवाही से बंद 50 वेंटीलेटर

-रखे-रखे बीत रही वेंटीलेटर के मेंटीनेंस की अवधि

जागरण संवाददाता, लखनऊ :

केजीएमयू प्रशासन जहां एक तरफ करोड़ों फूंक कर वेंटीलेटर खरीद डाले। वहीं डिब्बों में बंद होने से हर माह उसे लाखों का चूना लग रहा है। उधर, बेपरवाह प्रशासन वेंटीलेटर के अभाव में उखड़ती मरीजों के सांसों पर मौन बना हुआ है।

केजीएमयू में कुल 200 वेंटीलेटर हैं। इनमें से वर्ष भर से करीब 50 वेंटीलेटर डिब्बों में कैद हैं। इसमें 20-20 वेंटीलेटर क्रिटिकल केयर मेडिसिन व पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर के हैं। इन विभागों की यूनिटें शताब्दी-फेज टू में महीनों से बनकर तैयार हैं। मगर वेंटीलेटरों को डिब्बों से बाहर नहीं निकाला जा सका। और तो और सीटीवीएस, कार्डियोलॉजी, पीडियाट्रिक सर्जरी, क्वीनमेरी आदि में दिए गए करीब 10 वेंटीलेटर भी नहीं चल पा रहे हैं। ऐसे में करोड़ों के खरीदे गए कुल 50 वेंटीलेटर बंद हैं। वहीं हर रोज केजीएमयू को जहां 50 हजार का, वहीं माह में 15 लाख रुपये का राजस्व चूना भी लग रहा है। कारण, एक मरीज को केजीएमयू में वेंटीलेटर शुल्क एक हजार रुपये प्रतिदिन जमा करना पड़ता है। ऐसे में रखे-रखे वेंटीलेटर से केजीएमयू को लाखों का राजस्व का चूना भी लग रहा है।

-वेंटीलेटर न चलाना कहीं साजिश तो नहीं!

वेंटीलेटर न चलने से एनुअल मेंटीनेंस का समय भी बीत रहा है। इससे कंपनी को फायदा हो रहा है। वहीं लोग वेंटीलेटर न चलने को लेकर साजिश भी करार दे रहे हैं। लोगों का कहना है कि पास के ही एक निजी अस्पताल को फायदा पहुंचाने के लिए वेंटीलेटर का संचालन नहीं किया जा रहा है। ताकि मरीज को केजीएमयू में वेंटीलेटर न मिलने पर निजी अस्पताल का ही रुख करना मजबूरी हो।

-मैन पावर का हवाला देकर झाड़ रहे पल्ला

केजीएमयू प्रशासन कभी वेंटीलेटर कम व मरीजों का अधिक बोझ बताकर पल्ला झाड़ लेता है। तो कभी तीन हजार कर्मी व एक हजार से अधिक सीनियर-जूनियर डॉक्टरों की फौज वाले संस्थान में मैन पावर की कमी बताकर जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेता है। ऐसे में मरीजों को हर रोज जान गंवाना पड़ रहा है। ऐसा ही हाल गोंडा निवासी शेष नारायण शुक्ला की ट्रॉमा में वेंटीलेटर के अभाव में हुई मौत में भी हुआ। संसाधनों का अभाव बताकर मामला रफा-दफा कर दिया गया।


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