भटक गए नगर निगम के 110 चैंपियन, शहर की सफाई के लिए जागरुक करने के बजाय करने लगे दूसरा काम
लखनऊ नगर निगम की चैंपियन टीम सफाई के लिए जागरूक करने के बजाय निगरानी करने लगे करने लगे अधिकारियों के काम।
लखनऊ [अजय श्रीवास्तव]। शहर सफाई में कब चैंपियन बनेगा? यह सवाल कई दशक से शहरवासियों के जहन में है लेकिन अब शहर को साफ सुथरा रखने के लिए मैदान में उतारे गए चैंपियंस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े होने लगे है। एक चैंपियंस पर हर दिन पांच सौ रुपये खर्च हो रहा है और अभी 110 चैंपियंस रखे गए हैं,जिनकी संख्या बढ़ानी जानी है। मतलब हर दिन 55 हजार रुपये का खर्चा। एक सप्ताह से काम कर रहे यह चैंपियंस 'रास्ताÓ ही भटक गए और जिस काम को इन्हें करना था, उसके विपरीत काम करने लगे।
सफाई के लिए शहरवासियों में व्यवहार परिवर्तन के लिए लगाए गए यह चैंपियंस अफसरों के काम की ही निगरानी करने लगे। पड़ावघर पर एकत्र कूड़े की फोटो भेजकर अपनी ड्यूटी पूरी करने लगे।दिए गए कार्यों के विपरीत कार्य करने पर नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी ने भी गंभीरता से लिया। उनका मानना है कि जिस काम के लिए चैंपियंस लगाए गए थे, वह उस कार्य को नहीं कर रहे थे और खुद ही सफाई की निगरानी करने लगे थे और फोटो खींचकर भेज रहे थे, जबकि चैंपियंस का काम था कि वह घर घर जाकर लोगों को जागरूक करें और कूड़ा नगर निगम की तरफ से कूड़ा प्रबंधन के लिए अधिकृत मेसर्स ईको ग्रीन को ही कूड़ा देने के लिए कहें और उसे सड़क पर न फेंके। अब चैंपियंस से कहा गया है कि वह मेसर्स ईको ग्रीन की गाड़ी के पीछे जाएंगे और जिस घर से कूड़ा नहीं दिया जा रहा है, उन्हें जागरूक करने का काम करेंगे।
प्रयास अच्छा लेकिन निगरानी तंत्र कमजोर
बेशक इसमे कोई शक नहीं है कि शहर को साफ सुथरा बनाने की दिशा में अच्छे प्रयास हो रहे हैं लेकिन निगरानी तंत्र कमजोर होने से काम पटरी पर नहीं आ रहा है। चैंपियंस के कार्यों को जब नगर आयुक्त ने करीबी से देखा तो यह गड़बड़ी सामने आ सकी।
कौन है चैंपियंस
चैंपियंस टीम में युवकों को रखा गया है, जो लोगों को सफाई के प्रति जागरूक करेंगे, लेकिन बिना प्रशिक्षण के ही उन्हें मैदान में उतार दिया गया था और यह यह समझ नहीं पाए कि आखिरकार उन्हें करना क्या है, जो आया वही चैंपियंस बन गया।
- 350 रुपये प्रतिदिन मानदेय
- 150 रुपये भोजन व ईंधन खर्च
कहां है चार कूड़ा प्रबंधन विशेषज्ञ
एक नहीं चार विशेषज्ञ नगर निगम के पास हैं, जो ठोस कूड़ा प्रबंधन में महारत रखते हैं। इनके मानदेय पर भी हर माह 1.30 लाख रुपये खर्च हो रहा है लेकिन यह विशेषज्ञ कहां हैं? कौन सा काम कर रहे हैं? शहर के कूड़ा प्रबंधन को पटरी पर लाने में इनका कितना सहयोग है? यह तमाम सवाल अब नगर निगम में ही तैर रहे हैं। कार्यदायी संस्था शिवम सिक्योरिटी के माध्यम से इनकी तैनाती की गई है। इसमे दो विशेषज्ञों को 35-35 हजार रुपये और दो विशेषज्ञों को 30-30 हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय दिया जा रहा है। नगर स्वास्थ्य अधिकारी डा. एसके रावत का कहना है कि उनकी जानकारी में नहीं है कि नगर निगम में कूड़ा प्रबंधन के चार विशेषज्ञ भी तैनात हैं।