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गाजीपुर में अभियान चलाकर 108 लोगों को अमानवीय पेशे से दिलाई मुक्ति

54 लोगों को नगरपालिका मुहम्मदाबाद में संविदा पर नौकरी भी दिलवायी। शेष को स्वरोजगार से आत्मनिर्भर बनाया। इनमें से अधिकांश महिलाएं हैं।

By Ashish MishraEdited By: Published: Tue, 16 Oct 2018 10:04 AM (IST)Updated: Tue, 16 Oct 2018 11:01 AM (IST)
गाजीपुर में अभियान चलाकर 108 लोगों को अमानवीय पेशे से दिलाई मुक्ति
गाजीपुर में अभियान चलाकर 108 लोगों को अमानवीय पेशे से दिलाई मुक्ति

गाजीपुर [गोपाल यादव]। पीढ़ी-दर-पीढ़ी मानव मल उठाने जैसा अमानवीय पेशा करने वाले 108 लोगों के लिए ऊषा यादव तारणहार साबित हुई हैं। उनको इस पेेशे से छुटकारा दिलाने के लिए गांव-गांव सर्वे किया, जागरूकता अभियान चलाया, संघर्ष किया। उन्होंने न केवल इस पेशे से छुटकारा दिलाया बल्कि उन्हें सम्मानजनक रोजगार भी मुहैया कराया। 54 लोगों को नगरपालिका मुहम्मदाबाद में संविदा पर नौकरी भी दिलवायी। शेष को स्वरोजगार से आत्मनिर्भर बनाया। इनमें से अधिकांश महिलाएं हैं।

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समाज में फैले भेदभाव व अमानवीय कार्यों के प्रति समाजसेवी ऊषा यादव काफी गंभीर रहती हैं। इन्होंने स्वच्छकार समुदाय जिन्हें आम भाषा में लोग मेहतर कहते हैं उनके मानव मल उठाने जैसे घृणित पेशे के दर्द को शिद्दत के साथ महसूस किया। ऐसे में उससे मुक्ति दिलाने के लिए मन में ठान ली। आज हालत यह है कि अपने प्रयास से उन्होंने बड़ी संख्या में इस समुदाय के लोगों को घृणित काम से मुक्ति दिला दी।

इस पेशे से जुड़े लोगों को समाज के मुख्यधारा से जोडऩे के लिए रात दिन एक किए रहती हैं। वर्तमान में वह युवा विकास संस्थान से जुड़कर महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में लगी हैं। ऊषा के नेतृत्व में विभिन्न गांवों में महिलाओं के 10 स्वयं सहायता समूह चल रहे हैं।

दादी मां की फटकार ने बदली सोच

सैदपुर क्षेत्र के औडि़हार गांव निवासी प्यारेलाल की पुत्री ऊषा यादव तीन भाई बहनों में दूसरे नंबर पर हैं। जब वह कक्षा चार में पढ़ रहीं थीं तो एक दिन अपनी दलित व मुस्लिम सहेली को अपने घर लेकर चली गईं। उनका स्वागत किया और भोजन-पानी भी कराया। दलित व मुस्लिम लड़कियों को अपने बर्तन भोजन व पानी देने पर ऊषा की दादी आग बबूला हो गईं और उन्हें कड़ी फटकार लगाईं। अपनी सहेलियों के प्रति दादी मां के इस व्यवहार से उनके बाल मन को गहरा आघात पहुंचा।

उन्होंने उसी दिन से मन में ठान लिया कि वह समाज से ऐसी सोच को खत्म करके रहेंगी। समय बीतता गया और 1983 में उनका विवाह करीमुद्दीनपुर थाना क्षेत्र के उतरांव (बरईठा) निवासी शिवकुमार यादव से हुआ। परिवार के सहयोग से वह 1992 में स्वयंसेवी संस्था पूर्वांचल ग्रामीण विकास संस्थान एवं प्रशिक्षण संस्थान से जुड़कर अपने मिशन में जुट गईं।

गांव-गांव कराया सर्वे : संस्था से जुडऩे के बाद ऊषा 2003 में 'एक्शन एड के सहयोग से तहसील के चारों विकास खंड में मानव मल ढोने वाले कार्य में लगीं महिलाओं का सर्वे शुरू किया। इससे जुड़ी महिलाओं की आपबीती सुनकर उनकी रूह कांप जाती थी। अपने माध्यम से लगातार उन्हें यह पेशा छोडऩे को जागरूक करती रहीं। मेहनत रंग लायी और 2007 में उनके प्रयास से नगर पालिका क्षेत्र के 60 महिला व पुरुषों ने इस घृणित पेशे को छोड़ दिया।

तत्कालीन एसडीएम व पालिका के प्रशासक एसएन शुक्ला के सहयोग से उन्होंने इसमें से 54 लोगों को संविदा पर नगर पालिका में नौकरी दिला दी। उनका अभियान जारी है। इससे प्रभावित होकर क्षेत्र के विभिन्न गांवों की स्वच्छकार समुदाय की और 48 महिलाएं मानव मल ढोने के पेशे को छोड़ दूसरा व्यवसाय शुरू कर चुकी हैं।

तत्कालीन राष्ट्रपति से साझा किया अनुभव

स्वच्छकार समुदाय के बीच काम करने को लेकर 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की ओर से आयोजित बैठक में उन्हें शिरकत करने का मौका मिला। उस बैठक में जिले से एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में प्रतिभाग करने का गौरव उन्हें मिला। इस दौरान उन्होंने स्वच्छकार समुदाय के बीच काम करने में आने वाली परेशानियों से राष्ट्रपति को अवगत कराया।


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