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बालिका की बलिदान कथा से प्रेरित हो आजादी की लड़ाई में कूदे थे 'वचनेश त्रिपाठी'

1920 में हरदोई के सण्डीला में जन्मे वचनेश त्रिपाठी की लिखी क्रांति कथाएं बहुत लोकप्रिय हुईं। 1935 ई. में मात्र 15 वर्ष की आयु में मैनपुरी केस के फरार क्रांतिकारी देवनारायण भारतीय के सम्पर्क में आए और स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय होने का संकल्प लिया।

By Rafiya NazEdited By: Published: Tue, 01 Dec 2020 12:30 PM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2020 12:30 PM (IST)
बालिका की बलिदान कथा से प्रेरित हो आजादी की लड़ाई में कूदे थे 'वचनेश  त्रिपाठी'
1920 में हरदोई के सण्डीला में जन्मे वचनेश त्रिपाठी की लिखी क्रांति कथाएं बहुत लोकप्रिय हुईं।

लखनऊ, जेएनएन। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वचनेश त्रिपाठी ने क्रांति कथाओं को भी स्वर दिए। आजादी के महासमर में कूदने की प्रेरणा भी उन्हें एक बालिका के बलिदान की कथा से मिली। वो आजादी की मासूम सिपाही थी, जिसे अंग्रेजों ने जलाकर मार दिया था। 1857 में विद्रोहियों के नेता धुंधुपन्त नाना साहब अंग्रेजों से टक्कर ले रहे थे। पराजय भांपकर उन्होंने भूमिगत होने का निश्चय किया। निकलते समय उनकी पुत्री मैना कानपुर के बिठूर स्थित महल में ही रह गईं। महल को ध्वस्त करने पहुंचे तत्कालीन अफसरों ने उसे पकड़ लिया। यातनाएं दीं और फिर जिंदा जला दिया। बलिदान की इस कथा ने किशोर वचनेश को इतना प्रभावित किया कि वो आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।

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1920 में हरदोई के सण्डीला में जन्मे वचनेश त्रिपाठी की लिखी क्रांति कथाएं बहुत लोकप्रिय हुईं। 1935 ई. में मात्र 15 वर्ष की आयु में मैनपुरी केस के फरार क्रांतिकारी देवनारायण भारतीय के सम्पर्क में आए और स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय होने का संकल्प लिया। बालामऊ जंक्शन पुलिस चौकी लूटने के आरोप में उन्हें जेल भेजा गया और फिर जेल जाने का सिलसिला चल पड़ा। रामप्रसाद बिस्मिल के दल में काम करते हुए साथियों के साथ मिलकर 1942 में भूमिगत पत्र ‘चिनगारी’ निकाला। उसका संपादन भी किया। मैना के बलिदान पर आधारित उपन्यास लिखने के बाद वचनेश जी उसे प्रकाशित कराना चाहते थे। पुस्तक की भूमिका डाॅ. वृन्दावन लाल वर्मा से लिखवाई। प्रकाशन की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी तो उन्होंने खुद ही इसे छपवाने की योजना बनाई। उधार लिया और पत्नी के गहने तक गिरवी रखे। वह उपन्यास ‘विद्रोही की कन्या’ जब प्रकाशित होकर सामने आई तो धूम मच गई। बाद में उनकी लिखी वे आजाद थे, शहीद, मुक्त प्राण, अग्निपथ के राही, सुकरात का प्याला, गोदावरी की खोज, सूरज के बेटे और जरा याद करो कुर्बानी, इतिहास के झरोखे से, यह पुण्य प्रवाह हमारा आदि श्रृंखला की पुस्तकें बहुत लोकप्रिय हुईं। वचनेश जी ने ‘क्रान्तिमूर्ति दुर्गा भाभी’ पुस्तक भी लिखी, जिसे सरकार ने छपवाया।

शताब्दी समारोह पर आयोजन

वचनेश जी के सहयोगी रहे और उनकी स्मृति में स्थापित पद्मश्री वचनेश स्मृति संस्थान के सचिव एसके गोपाल ने बताया कि वर्तमान वर्ष पंडित वचनेश त्रिपाठी जी का जन्मशती वर्ष है। कोरोना के कारण शताब्दी समारोह पर होने वाले आयोजनों में कुछ को सीमित लोगों के बीच और कुछ आयोजनों को वर्चुअल मंच पर करने की तैयारी है।


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