कोरोना से जंग में हथियार बनेंगी जनजाति की महिलाएं
50 महिलाओं को औषधीय पौधों की पहचान कराने के लिए शुरू किया प्रोजेक्ट। औषधीय पौधों को जुटाने और रोजगार सृजन की कोशिश में जुटे अधिकारी
लखीमपुर: कोरोना के मात देने के उद्देश्य से खीरी जिले में एक अनूठी पहल की गई है। पलिया क्षेत्र में थारू जनजाति की स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं को औषधीय पौधों की पहचान कराने के लिए ट्रेनिग दी जा रही है। इन महिलाओं के जरिए औषधीय पौधों को एकत्रित किया जाएगा। इनकी बिक्री से महिलाओं के रोजगार सृजन का रास्ता भी साफ होगा।
तराई इलाके खासकर पलिया, निघासन और बिजुआ क्षेत्र में सड़कों के किनारे सैकड़ों औषधीय पौधे अपने आप उग आते हैं। जिनकी पहचान आम लोगों को नहीं होती है लेकिन, इनसे इंसान का इम्युनिटी सिस्टम मजबूत रहता है। इनमें गिलोय, अश्वगंधा जैसे पौधे बेहद कारगर हैं। अधिकारियों ने उस क्षेत्र के समूहों में 50 महिलाओं को चिन्हित किया है, जिन्हें हाल में ही पीलीभीत से बुलाए गए विशेषज्ञों से ट्रेनिग दिलाई गई है। वहीं क्षेत्रीय यूनानी आयुर्वेदिक अधिकारी डीके द्विवेदी को महिलाओं की तकनीकी मदद के लिए लगाया गया है। औषधीय पौधों को जुटाने, साफ करने के बाद अधिकारियों की ओर से उन्हें बिक्री के लिए बाजार भी उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके लिए राष्ट्रीय आजीविका मिशन के जिला मिशन प्रबंधक को जिम्मेदारी सौंपी गई है। जब तक जड़ी-बूटियों की बिक्री नहीं हो जाती, तब तक उत्पादन को व्यवस्थित रखने के लिए महिलाओं को स्टोर की व्यवस्था भी की गई है। इस पूरे प्रोजेक्ट को अमलीजामा पहनाने के लिए बीडीओ पलिया, निघासन, बिजुआ के साथ-साथ कई अन्य अधिकारियों को भी जिम्मेदारी सौंपी गई है। औषधीय खेती के लिए बड़े किसानों को कर रहे प्रेरित
अधिकारियों की एक टीम जंगल से सटे किसानों को भी औषधीय खेती के लिए प्रेरित कर रही है। उन्हें कोरोना काल में आयुर्वेद का महत्व समझाया जा रहा है, ताकि तराई औषधीय खेती का हब बन सके और लोगों के लिए रोजगार सृजन का भी साधन बने। जिम्मेदार की सुनिए
सीडीओ अरविद सिंह कहते हैं कि तराई का यह इलाका औषधीय पौधों का गढ़ है। कोरोना काल में महिलाओं के रोजगार सृजन के साथ ही आयुर्वेद को भी बढ़ावा मिलेगा। कई विभागों के अधिकारी मदद कर रहे हैं, लेकिन जरूरत पड़ी तो महिलाओं को सी-मैप से भी ट्रेनिग दिलाई जाएगी।