पंचायत चुनाव की आहट से प्रधानों में बेचैनी
वोटरों को लुभाने के लिए गांवों में बहाने लगे विकास की गंगा। अब साढ़े चार साल बीत जाने के बाद जब फिर चुनाव की आहट सुनाई देने लगी है तो इन्हे गांव के विकास की चिता सताने लगी है।
लखीमपुर: चुनाव में विजयी होने के बाद अधिकांश ग्राम प्रधान गांव के विकास की गति बढ़ाने के लिए सजग नहीं दिखे थे। अब साढ़े चार साल बीत जाने के बाद जब फिर चुनाव की आहट सुनाई देने लगी है तो इन्हे गांव के विकास की चिता सताने लगी है। कुछ गांवों में तो तेजी से काम भी शुरू हो गए हैं। 2015 में पंचायत चुनाव जीतकर प्रधान बने अधिकांश लोग कुंभकर्णी नींद सो रहे थे और गांव के विकास की ओर रत्तीभर ध्यान नहीं दिया। केवल विकास के नाम पर गांवों में आने वाली योजनाओं के अंतर्गत मिले धन का दुरुपयोग करते रहे। गांवों में बजबजा रही नालियों की भी सफाई पर ध्यान नहीं दिया गया। टूटी पड़ी नालियों व खड़ंजों की मरम्मत भी नहीं कराई गई। पर अब पंचायत चुनाव की संभावित तिथि घोषित होने से खासकर मौजूदा ग्राम प्रधानों में बेचैनी बढ़ गई है। आरक्षण में कौन सीट होगी इसका भी अता पता नहीं है लेकिन, फिर भी कहीं सीट छिन न जाए इसको लेकर गोट बिछानी शुरू कर दी गई है। चुनाव होने की संभावना के बाद विकास का पहिया गांवों में घूमने लगा है। गांव में टूटी व गंदगी से भरी पड़ी नालियों, खराब पड़े खड़ंजों की मरम्मत कराई जा रही है। कहीं सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण हो रहा है तो कहीं पंचायत घर का निर्माण चालू है। प्रधानों में जहां छटपटाहट बढ़ गई है वहीं प्रधानी के संभावित उम्मीदवार भी मतदाताओं को प्रलोभन देने में लग गए हैं। पंचायत चुनाव की संभावना से गांव में होने वाले कामों में तेजी आ गई है। जागरण ने ग्रामीण इलाकों में इसकी पड़ताल की तो ग्रामीणों ने बताया कि बेसहारा पशुओं से हम लोग बहुत परेशान हैं। ऐसे में वो लोग ग्राम प्रधान से लेकर खंड विकास अधिकारी से गुहार कर चुके हैं लेकिन, अभी तक उन्हें केवल आश्वासन ही मिल सका है।