मोटरसाइकिल से प्रचार और जमीन पर चौपाल यही थी मुन्ना की चाल
पलिया तहसील के एक छोटे से गांव त्रिकोलिया के एक बेहद साधारण परिवार से निकलकर राजनीति में आए पूर्व विधायक निरवेंद्र कुमार मिश्र उर्फ मुन्ना भले ही आज दुनिया को अलविदा कह गए।
लखीमपुर : पलिया तहसील के एक छोटे से गांव त्रिकोलिया के एक बेहद साधारण परिवार से निकलकर राजनीति में आए पूर्व विधायक निरवेंद्र कुमार मिश्र उर्फ मुन्ना भले ही आज दुनिया को अलविदा कह गए। लेकिन जमीन से जुड़ा उनका खाटी स्वभाव राजनीति करने वालों के लिए एक नजीर बन गया। उनका राजनैतिक सफर आज भी चौंकाने वाला है। गरीबों को न्याय दिलाने के लिए जन आंदोलनों के जरिए चर्चा में आए पूर्व विधायक मुन्ना ने निघासन से वर्ष 1989 में पहली बार विधान सभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में ताल ठोंकी। इस चुनाव में उन्हें अमीरी और गरीबी को मुद्दा बनाया। जनता के बीच इस नारे का ऐसा असर हुआ कि जनता ने अपने पैसों से जगह-जगह इस नारे के पोस्टर चस्पा करवा दिए। इस चुनाव में कांग्रेस के कददावर प्रत्याशी को मुंह की खानी पड़ी। मुन्ना निघासन से पहली बार विधायक निर्वाचित हुए। विधायक बनने के बाद मुन्ना ने सादिगी नहीं छोड़ी। मोटरसाइकिल से क्षेत्र भ्रमण करना, जमीन में बैठकर कहीं पर भी चौपाल लगाना, जनता की समस्या बेहद जिम्मेदारी से सुनना मुन्ना के स्वभाव में था। जंगल से सटे गांव के लोगों की समस्याओं को लेकर मुन्ना ने बेलरायां में एक ऐसा जनआंदोलन किया जोकि पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना। इस जन आंदोलन को रोकने में तत्कालीन प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन की चूलें हिल गईं। इस आमरण अनशन में हजारों की संख्या में पूरी विधानसभा की हजारों महिला और पुरुष ने मुन्ना का साथ दिया और करीब एक महीने तक जनता की भारी भीड़ बेलरायां रेलवे स्टेशन पर डेरा डाले रही। इस बीच पूरा बेलरायां छावनी में तब्दील रहा। जन आंदोलन का रूख देख तत्कालीन सरकार ने अपने वनमंत्री को खुद हेलीकाप्टर से बेलरायां भेजा। मुन्ना विधायक ही थे इसी बीच पूरे देश मे वर्ष 1991 में रामजन्मभूमि का मामला तूल पकड़ गया। बड़े-बड़े गैर भाजपाई राजनैतिक सूरमाओं की राजनैतिक जमीन हिलने, खिसकने लगी लेकिन पूरे देश में रामलहर के बाद भी मुन्ना जनता के बीच लोकप्रिय रहे। अपनी लोकप्रियता के दम पर मुन्ना ने रामलहर के बीच भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीत लिया। इस बीच जनता ने नारा दिया था आधी रोटी खाएगें मुन्ना को जिताएंगे। यह नारा ऐसा प्रचलित हुआ कि गांव-गांव लोगों ने अपने खर्चों पर घरों के आसपास लाउडस्पीकर टांग दिए। रिकार्डेड कैसेट के जरिए यह नारा लोगों के बीच सर चढ़कर बोलने लगा। वर्ष 1993 में एक फिर हुए चुनाव में मुन्ना ने सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत की हैट्रिक कायम की।