सभी को अपनी-अपनी पद्धति से पूजा का अधिकार
पेशे से अधिवक्ता और एक निजी विद्यालय के प्रबंधक के रूप में शहर आचार्य संजय मिश्र ने समाज को सेवाएं दी हैं वहीं समय-समय पर धर्म के लिए संघर्ष किया है।
लखीमपुर: प्रभु श्रीराम सभी के हैं। उनकी पूजा-अर्चना का अधिकार सभी को है। यह कहना है शहर के समाजसेवी आचार्य संजय मिश्र का। पेशे से अधिवक्ता और एक निजी विद्यालय के प्रबंधक के रूप में उन्होंने जहां समाज को सेवाएं दी हैं, वहीं समय-समय पर धर्म के लिए संघर्ष किया है। उनका कहना है कि प्रभु श्रीराम ने शबरी के बेर खाकर यह साबित किया था कि वे किसी वर्ग विशेष की नहीं, बल्कि आम जनमानस के पाप और ताप हरने के लिए आए हैं। इसी मान्यता के आधार पर वे जन-जन को प्रभु श्रीराम की पूजा कराने का अधिकार दिला रहे हैं। देश में सभी को अपनी-अपनी पद्धति से पूजा का अधिकार है।
आचार्य संजय मिश्रा बताते हैं कि जिले भर में ऐसा तो कोई मंदिर नहीं जहां जातिवाद के कारण लोगों से भेदभाव किया जाता है। गांव खागी ओयल में भगवान शिव का विशाल मंदिर बनाने वाले बराती लाल को उसी मंदिर में पुरोहित बनाने में सहायता करने वाले आचार्य संजय मिश्र बताते हैं कि नेपाल की सीमा पर चंदन चौकी में जो थारू बाहुल्य क्षेत्र है वहां एक भी मंदिर नहीं था। सन 2000 के बाद से वहां पर पांच विशाल मंदिर हैं और इन सभी के पुरोहित थारू जनजाति के लोग हैं, इतना ही नहीं 2000 के आसपास अब वहां पर थारू जनजाति के संत भी हो गए हैं। वे बताते हैं कि पलिया में सन 2000 से पहले ईसाइयों के द्वारा तेजी से धर्मांतरण करके थारूओं को ईसाई बनाया जा रहा था। थारूओं के लखीमपुर आकर उनसे आग्रह करने पर वे वहां पर पहुंचे और उन्होंने लोगों को सनातन धर्म की जानकारी दी सनातन धर्म में दक्ष किया धार्मिक अनुष्ठान करवाएं। इस प्रकार उन्होंने 5000 से ज्यादा थारूओं के धर्मांतरण रुकवाकर उन्हें सनातन धर्मी बनाया। वर्ष 2015 में विलोबी मैदान में साध्वी प्राची की मौजूदगी में पूरे परिवार की घर वापसी कराई। वर्ष 2006 में पलिया तहसील में 55 परिवारों को हिदू धर्म में वापसी करवाई। इसके लिए कई बार उन्हें अदालत के चक्कर भी काटने पड़े। वे कहते हैं कि हम जिस धर्म में जन्मे हैं उस धर्म से बढ़कर हमारे लिए कोई धर्म नहीं है। श्रीराम को छोड़कर हम और हमारे धर्म में जन्मे लोग वे भले ही किसी जाति के हों, उन्हें दूसरे धर्म में जबरन खींचने का अधिकार किसी को नहीं, वे स्वतंत्र हैं अपने धर्म में पूजा करने के लिए।