जरूरतमंदों व मजलूमों के बड़े हमदर्द थे मुन्ना विधायक
तीन बार विधायक रहने के बाद भी नहीं बना पाए थे शानो शौकत। मुलायम सिंह यादव के काफी चहेते रहे थे निरवेंद्र मुन्ना।
लखीमपुर : तीन बार विधायक रहे निरवेंद्र कुमार मिश्रा उर्फ मुन्ना जरूरतमंदों व मजलूमों के बड़े हमदर्द थे। जहां पर भी बात जरूरतमंद की आती, वहीं पर वे जात-पात व पार्टी की राजनीति को छोड़कर उनके साथ खड़े हो जाते थे। प्रतिबद्धता यहां तक कि जरूरतमंदों के लिए आमरण अनशन तक पर बैठ जाते थे। फिर चाहे जान पर ही क्यों न बन आए लेकिन, अनशन तभी तोड़ते थे जब उनकी मांग पूरी हो जाती थी। जरूरतमंद तबके के लोग उन्हें अपना हमदर्द मानते भी थे। यही वजह रही कि वे लगातार तीन बार उस दौर में विधायक चुने गए, जिस दौर में दल-बदल के कारण सरकार तक स्थिर नहीं हो पा रही थी।
उस समय जबरदस्त राम लहर थी लेकिन, इस चुनाव तक मुन्ना कुछ परिपक्व हो चुके थे और उन्होंने माहौल को भांपकर पूरे चुनाव को अमीर बनाम जरूरतमंद बना दिया था। साथ ही करोड़पतियों तुम्हें चुनौती है मुन्ना को हराकर दिखाओ का नारा देकर निर्दलीय चुनाव जीता था। हालांकि इस विधानसभा का भी कार्यकाल पूरा नहीं हो पाया और मध्यावधि चुनाव कराना पड़ा था। वर्ष 1993 में हुए चुनाव में मुन्ना तीसरी बार सपा के टिकट पर चुनाव जीते थे और उस समय गन्ना मंत्री के लिए उनका नाम काफी चर्चा में था लेकिन, मुलायम सिंह के चहेते होने के बाद भी अंत समय में मत्रिमंडल से उनका नाम हट गया था। उस समय तो मुन्ना ने यह खून का घूंट पी लिया था लेकिन, उसके बाद फिर 1996 में जब चुनाव हुआ तो मुन्ना ने इसका करारा जवाब भी मुलायम सिंह को दिया था। उन्होंने सपा का टिकट लेकर भी सपा प्रत्याशी के रूप में नामांकन नहीं कराया था और अंतिम दिन नामांकन कराया था ताकि पार्टी किसी को उम्मीदवार भी न बना सके। हालांकि यह उनके राजनीतिक जीवन की भूल साबित हुई और वे चुनाव हार गए थे। उसके बाद से ही उनके राजनीतिक कॅरियर का अवसान शुरू हो गया था। उसके बाद भी मुन्ना ने कई बार प्रयास किया लेकिन, चुनाव में सफलता नहीं मिल पाई थी। इस बीच उनकी सेहत भी काफी खराब हो गई थी। उन्हें बाईपास सर्जरी भी करानी पड़ी थी। पिछले करीब 10 वर्ष से वह शांत और एकाकी जीवन बिता रहे थे।