विधानसभा धौरहरा के 16 चुनावों में छह चेहरों के पास रही विधायकी
मतदाता का बदला मूड इस बार मिल सकता है विधायक का नया चेहरा।
अंबुज मिश्र, ईसानगर (लखीमपुर): धौरहरा विधानसभा के 16 चुनावों में अभी तक छह चेहरों के इर्द-गिर्द विधायकी घूमती रही। विधानसभा धौरहरा को इस बार विधायक के रूप में नया चेहरा मिल सकता है। मतदाता भी नए चेहरे को वोट देने का मन बना चुके हैं।
विधानसभा धौरहरा का पहला चुनाव 1957 में हुआ था। 1957 में यहां से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के जगन्नाथ प्रसाद विधायक चुने गए थे। इसके बाद 1962 के चुनाव में कांग्रेस के तेजनारायण ने जगन्नाथ प्रसाद को हराकर यहां कब्जा किया हालांकि 1967 में जगन्नाथ प्रसाद ने टी प्रसाद को हराकर इस सीट पर फिर काबिज हो गए। 1969 में जगन्नाथ प्रसाद कांग्रेस के टिकट पर यहां से लड़े और तीसरी बार विधायक बने इसके बाद 1974 से 1985 तक निर्दलीय प्रत्याशियों ने मतदाताओं को बांधे रखा। वहीं 1989 में मतदाताओं ने फिर कांग्रेस पर भरोसा किया और सरस्वती प्रताप सिंह को विधायक बनाया। 1991 के चुनाव में चली राम लहर में पहली बार भाजपा का खाता इस सीट पर खुला और बाला प्रसाद विधायक बने। 1993 में यह सीट सपा के खाते में चली गई और यशपाल चौधरी विधानसभा पहुंचे। 1996 में कांग्रेस के सरस्वती प्रसाद सिंह ने जीत दर्ज की। 2002 में सपा के यशपाल चौधरी फिर विधायक बने। वहीं 2007 में मायावती की सोशल इंजीनियरिग फार्मूले ने इस सीट पर बसपा का खाता खोला और बाला प्रसाद विधायक चुने गए। 2012 में भी जनता ने बसपा के ही प्रत्याशी शमशेर बहादुर पर भरोसा जताया और विधानसभा भेजा। 2017 में मोदी लहर को भांपकर बाला प्रसाद ने भाजपा का दामन थामा और टिकट लेकर इस सीट से चुनाव लड़े और फिर विधायक बने। इस तरह धौरहरा की विधायकी तेजनरायन त्रिवेदी, जगन्नाथ प्रसाद, सरस्वती प्रताप सिंह, बाला प्रसाद अवस्थी, यशपाल चौधरी, शमशेर बहादुर के इर्द गिर्द घूमती रही। इन विधायकों में तेजनरायन त्रिवेदी, जगन्नाथ प्रसाद, सरस्वती प्रताप ने अपनी राजनैतिक विरासत बेटों को सौंपने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे। वहीं इस बार पूर्व मंत्री यशपाल चौधरी की मृत्यु के बाद उनके लड़के वरुण चौधरी राजनैतिक अखाड़े में उतर रहे हैं। वहीं बालाप्रसाद अवस्थी के बेटे राजीव अवस्थी मैदान मारने को तैयार हैं। विडंबना यह है कि दोनों रणबांकुरे एक ही पार्टी से टिकट मांग रहे हैं।