सीरत बदली पर नहीं बदली श्रीनगर की सूरत
जातीय समीकरणों के सहारे प्रत्याशियों की नैया पार होती रही है।
लखीमपुर : जातीय समीकरणों के सहारे प्रत्याशियों की नैया पार होती रही है। इसकी बानगी यह कि क्षेत्र में विकास का स्वरूप वर्षों से जस का तस रहा। बात श्रीनगर 140 विधासभा की है।
फूलबेहड़ क्षेत्र के एक छोटे से गांव श्रीनगर के नाम से विधानसभा सीट का सृजन 1957 में हुआ था। दलित और मुस्लिम बहुलता वाले क्षेत्र में हर बार किसी राष्ट्रीय पार्टी का ही उम्मीदवार जीत दर्ज कर विधानसभा में पहुंचा। 1957, 1962 और 1969 में कांग्रेस के बंशीधर शुक्ल प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के विधायक रहे। लगातार तीन बार जीत दर्ज की। 1974 में जनसंघ और 1977 में जनता पार्टी से राजा ब्रजराज सिंह ने जीत दर्ज की थी। 1980 में इंक के उपेंद्र बहादुर, 1985 और 1989 में लगातार दो बार कांग्रेस के कमाल अहमद विजयी रहे। 1991 में कांग्रेस के ही तेजनारायण त्रिवेदी ने जनता पार्टी के धीरेंद्र बहादुर को हराया था। 1993 में धीरेंद्र बहादुर ने पार्टी बदली। सपा से चुनाव लड़ा और उन्होंने भाजपा के कमलाकांत को हराया। 1996 बसपा की माया प्रसाद ने सपा के धीरेंद्र बहादुर से श्रीनगर सीट छीनी। 2002 में भी बसपा की माया प्रसाद का कब्जा रहा। 2007 में सपा के आर उस्मानी ने बसपा की माया प्रसाद को हराकर सीट सपा की झोली में डाली। 2012 सपा के ही राम सरन ने जीत दर्जकर बसपा को ही झटका दिया। सब्ज बाग दिखा हथियाते रहे सीट
कमोवेश सभी प्रत्याशियों ने ग्रामीणों को पचपेड़ी घाट पुल, डिग्री कालेज, सड़क, बिजली, स्वच्छ पानी का सब्ज बाग दिखा सीट जीती। श्रीनगर और निघासन विधानसभा को जोड़ने वाला पैंटून पुल को स्थाई पुल करने की वर्षों से मांग रही है। 2017 में उलट फेर हुआ और विकास का वादा कर बीजेपी की मंजू त्यागी विधायक बनी। खास यह कि निर्दलीय उम्मीदवारों को जनता ने हर बार नकार दिया। बावजूद क्षेत्र बाढ़ कटान की त्रासदी से उबर नहीं सका। कर चुके हैं वोट का बहिष्कार
बीते वर्ष यानी 2017 में बाढ़ कटान से परेशान होकर बड़ा गांव के वाशिदों ने चुनाव का बहिष्कार कर वोट नहीं डाला था। हालांकि प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने भी काफी मानमनौव्वल किया था। बावजूद ग्रामीण अपनी हठ पर काबिज रहे थे। इस बार मतदाताओं का रुझान क्या है यह किसी प्रत्याशी या पार्टी कार्यकर्ता के लिए समझ से परे है।
बड़ा गांव निवासी साधनलाल कहते हैं कि हम लोग हर वर्ष बाढ़ कटान की मार झेल रहे हैं। फसल भी चौपट हो जाती है। खेती ही जीविका है। चुनाव में जनप्रतिनिधि वादा कर जाते हैं। यह समस्या आज तक दूर नहीं हुई।
शारदा तटबंध के अंदर बसे बड़ा गांव के पूर्व प्रधान छोटन्न ने कहा कि हमारे क्षेत्र में बाढ़ कटान एक प्रमुख समस्या है। बाढ़ में रास्ते व खेत जलमग्न हो जाते हैं। बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है। अभी तक किसी जनप्रतिनिधि ने समस्या का स्थाई समाधान नहीं किया।
तेंदुआ निवासी अनिल वाजपेयी ने बताया कि गांव में न तो ढंग की सड़क है और न ही कोई डिग्री कालेज। लड़कियों को उच्च शिक्षा के लिए शहर जाना पड़ता है।
तेंदुआ के मो. असलम ने कहा कि अगर पचपेड़ी घाट पुल बन जाता है तो क्षेत्र में बाढ़ कटान रुकेगी और क्षेत्र में खुशहाली आएगी।