भारत के गांवों में नेपाल की मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली कंपनी का ही नेटवर्क
प्रधानमंत्री की योजना से लखीमपुर जिले में नेपाल सीमा से सटे गांव वंचित रहेंगे। गांवों में नेपाल की मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली कंपनी का नेटवर्क ही आता है।
लखीमपुर खीरी, पलिया कलां[हरीश श्रीवास्तव]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्तमान समय में कैशलेस ट्रांजेक्शन पर जोर दे रहे हैं। देश में सभी से मोबाइल बैंकिंग अपनाने का अनुरोध किया जा रहा है। प्रधानमंत्री की डिजिटल इंडिया योजना से लखीमपुर जिले में नेपाल सीमा से सटे गांव वंचित रहेंगे।
इन गांवों में नेपाल की मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली कंपनी का नेटवर्क ही आता है। जिसके कारण यहां से लोग नेपाल की मोबाइल सेवा का लाभ लेने को मजबूर हैं।
देश में एक तरफ जहां 4-जी इंटरनेट काम कर रहा है, जिससे तेज रफ्तार इंटरनेट के जरिए पूरी दुनिया से जुड़ चुके हैं, वहीं लखीमपुर जिले में यह बदलाव का दौर बड़ी आबादी नहीं देख पा रही है। दूसरे देश की मोबाइल सेवा का नेटवर्क लखीमपुर खीरी के गांव में आने के कारण सुरक्षा तंत्र पर भी खतरा है। नेपाल के नेटवर्क के कारण कोई भी भारत की संचार सेवा को बाधित कर सकता है।
फोर-जी के दौर में मोबाइल नेटवर्क को तरस रहे थारू
बदलाव व विकास की इस दौर के बीच दुधवा टाइगर रिजर्व जंगल की आगोश में बसे दो दर्जन से अधिक थारू गांव के बाशिंदे आज भी साधारण मोबाइल नेटवर्क न मिलने से त्रस्त हैं। यहां पर कोई प्राइवेट मोबाइल कंपनी टावर नहीं लगा सकती है। मोबाइल से बात करना ही मुश्किल हो फिर इंटरनेट तो बेमानी ही कहा जाएगा। ऐसा तब है जब देश डिजिटल इंडिया के जरिए क्रांतिकारी बदलाव की बयार बहने के दावे किए जा रहे हैं। तमाम थारू गांवों में भारत के किसी भी मोबाइल कंपनी के सिम काम नहीं करते।
चंदनचौकी, गौरीफंटा आदि इलाकों को छोड़ बनकटी, सूड़ा, भूड़ा, छेदिया पश्चिम, पचपेड़ा, पोया, परसिया, मुडऩोचनी, सौनहा, सूड़ा, जयनगर, मसानखंभ, ढकिया, बिरिया, मूड़ा, छिदिया, सरियापारा, सौनहा, ध्यानपुर आदि गांव नेपाली मोबाइल नेटवर्क के भरोसे हैं।
यहां अगर आप भारतीय सिम लेकर पहुंच गए तो बेकार साबित होगा। चंदनचौकी में बीएसएनएल का टावर लगा है, जो पांच किमी की रेडियस में ही नेटवर्क प्रदान करता है। इसके आगे जाने पर नेटवर्क मिलना बंद हो जाता है। ग्राम भूड़ा के रामनरेश राना, भूपेंद्र राना, जगदीश राना, सुधीर राना ने बताया कि वे लोग नेपाली सिम एनसेल का प्रयोग करते हैं। उसके नेटवर्क अच्छे आते हैं, जिसके जरिए ही वे पलिया व अन्य जगहों पर संपर्क स्थापित कर पाते हैं।
इस वजह से आ रही समस्या
दरअसल दुधवा परिक्षेत्र होने की वजह से यहां पर मोबाइल टावर लगाना चुनौती भरा है। इंडो-नेपाल बॉर्डर से सटे व दुधवा जंगल से आच्छादित करीब तीन दर्जन थारु गांव मोबाइल नेटवर्क के मामले में हाशिए पर खड़े हैं। चंदनचौकी में दूर संचार विभाग ने एक टावर लगाया है। जो पांच किमी के रेडियस में कार्य करता है, लेकिन सभी गांवों तक नेटवर्क पहुंचाने की क्षमता उसमें नहीं।
निकल सकता है हल
समस्या का हल भी है, लेकिन उसके लिए जंगल से होकर एफओसी यानि फाइबर आप्टिकल केबिल बिछाना जरूरी है। केबिल अंडरग्राउंड पड़ेगी और इसके लिए पार्क में खुदाई का काम भी करना होगा। बस यहीं पेंच फंस जाता है। दरअसल नियम कहते हैं कि पार्क के भीतर प्रकृति से कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। यहां तक कि प्रशासन जंगल के भीतर पक्की सड़क तक नहीं बना सकता, खुदाई तो बहुत दूर की बात है।
जिम्मेदार कहते हैं
एसडीओ बीएसएनएल, योगेश कुमार ने बताया कि थारू क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क प्रदान करने के लिए फाइबर आप्टिकल केबल बिछाई जानी है। इस काम के लिए एनओसी जरूरी है। फाइल ऊपर तक जा चुकी है, लेकिन कार्य करने के लिए अभी तक हरी झंडी नहीं मिली। उम्मीद है कि जल्द इस मामले में कोई निर्देश प्राप्त होगा।