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भगवान भोलेनाथ को प्रिय है सावन का महीना

रुद्राभिषेक का है विशेष महत्व। इस बार सावन की शुरुआत छह जुलाई से हो रही है और सावन का पहला दिन भी सोमवार पड़ रहा है। शिव भक्तों को इस वर्ष पांच सोमवार शिव की आराधना के लिए मिलेंगे।

By JagranEdited By: Published: Sat, 04 Jul 2020 10:55 PM (IST)Updated: Sat, 04 Jul 2020 10:55 PM (IST)
भगवान भोलेनाथ को प्रिय है सावन का महीना
भगवान भोलेनाथ को प्रिय है सावन का महीना

लखीमपुर: सावन के दिनों में भगवान शिव का व्रत,पूजन व रुद्राभिषेक विशेष फलदायी है। इस बार सावन की शुरुआत छह जुलाई से हो रही है और सावन का पहला दिन भी सोमवार पड़ रहा है। शिव भक्तों को इस वर्ष पांच सोमवार शिव की आराधना के लिए मिलेंगे।

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मार्कण्डेय ऋषि के पुत्र ने पाया था दीर्घायु का वरदान

भगवान शिव को सावन का महीना क्यों प्रिय है, सोमवार के दिन पूजन तथा रुद्राभिषेक से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों पर चंद्रकला आश्रम के यज्ञाचार उत्सव शुक्ल शास्त्री बताते हैं कि श्रावण मास के विषय में पौराणिक मान्यता है कि मरकंड ऋषि के पुत्र मार्कण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर भगवान शिव की कृपा से दीर्घायु प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।

इसी माह में पृथ्वी पर अवतरित हुए थे शिव

भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का एक कारण यह है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अ‌र्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है। श्रावण मास के सोमवार व्रत करने से सभी इच्छाएं पूरी होती है। इन दिनों किया गया दान पुण्य एवं पूजन समस्त ज्योतिर्लिगों के दर्शन के समान फल देने वाला होता है। इस व्रत का पालन कई उद्देश्यों से किया जा सकता है। वैवाहिक जीवन की लंबी आयु और संतान की सुख-समृद्धि के लिए यह मनोवांछित वर की प्राप्ति करती है। सावन सोमवार व्रत कुल वृद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति और सुख-सम्मान देने वाले होते हैं। इन दिनों में भगवान शिव की पूजा बेलपत्र से की जाती है। समस्त पापों को नष्ट करता है रुद्राभिषेक

उत्सव शुक्ल शास्त्री बताते हैं कि शिव को ही रूद्र कहा जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार,मानव द्वारा किए गए पाप ही दु:खों के कारण होते हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से पातक एंव महापातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं, साधक में शिवत्व का उदय होता है, साधक के सभी मनोरथ पूरे होते हैं। शास्त्रों के अनुसार एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।


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