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13 साल बाद गांजर में फिर लौटी तेंदुए की दहशत

छह लोगों की जान लेने के बाद बेलाहार में ग्रामीणों के हाथों मारा गया था तेंदुआ। दो बालकों के शिकार के बाद इलाके में फिर 13 साल पहले की दहशत लौट आई है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 27 Sep 2020 10:09 PM (IST)Updated: Sun, 27 Sep 2020 10:09 PM (IST)
13 साल बाद गांजर में फिर लौटी तेंदुए की दहशत
13 साल बाद गांजर में फिर लौटी तेंदुए की दहशत

लखीमपुर : गांजर में मानव-वन्यजीव संघर्ष का टकराव काफी पुराना है। दो बालकों के शिकार के बाद इलाके में एक बार फिर 13 साल पहले की दहशत लौट आई है।

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उस समय तेंदुए के आतंक की शुरुआत सितंबर 2007 में हुई थी। शुरू में तेंदुए ने एक गाय मारी थी, जिसे वन विभाग ने हल्के में लिया। इसके बाद तेंदुए के कदम बढ़ते गए और ग्रामीणों का गुस्सा भी। सितंबर 2007 से अप्रैल 2008 तक तेंदुए ने ग्राम भव्वापुर, चौरा, अंधपुर जेठरा, रेहुआ, सेमरहना और गैसापुर गांवों में इन्सानों का शिकार किया। इसमें गैसापुर निवासी संतराम ही अकेले भाग्यशाली थे, जो घायल होने के बाद इलाज के कारण जीवित बच गए थे। इसके बाद तेंदुआ की लोकेशन बेलाहार गांव में मिली। यह वाकया चार अप्रैल 2008 का था, जब नरभक्षी तेंदुए को गांव के पास एक झाड़ी में घेर लिया गया। तत्कालीन डीएफओ केके सिंह खुद ट्रैंकुलाइजिग गन लेकर बंद गाड़ी से पेट्रोलिग कर रहे थे।

रेंजर एसके तिवारी ने पुलिस फोर्स के साथ घेरा डाला था। तमाम अधिकारी और हजारों लोग मौजूद थे। अचानक तेंदुआ झाड़ी से उछल कर गांव के एक घर में जा घुसा। भगदड़ मच गई। ग्रामीणों ने अधिकारियों पर हमला कर दिया। फिर घर में घुसे तेंदुए को पीटकर मार डाला और जला भी दिया। बाद में विभाग ने 250 लोगों पर मुकदमा किया था, लेकिन इस घटना से तेंदुए के आतंक का भी अंत हो गया था। शावक साथ होने के कारण ज्यादा खतरनाक है तेंदुआ

रविवार को बनटुकरा में घटना के प्रत्यक्षदर्शी प्यारेलाल जायसवाल, दुर्गेश और ब्रजेश का कहना है कि तेंदुए के साथ उसके दो शावक भी दिखे। बकौल प्यारेलाल दोनों शावक तेंदुए के पेट के नीचे चल रहे थे और बहुत छोटे थे। इससे आशंका जताई जा रही है कि शावकों को साथ लेकर घूम रही मादा तेंदुआ खुद के बच्चों की सुरक्षा को लेकर डरी हुई हो सकती है। जानकार मानते हैं कि तेंदुआ वैसे ही खतरनाक जानवर होता है। मादा तेंदुआ ज्यादा आक्रामक होती है। खासकर जब शावक साथ हों तो इसकी आक्रामकता कई गुना बढ़ जाती है। आशंका यह भी है कि नदी किनारे सैकड़ों एकड़ में फैले गन्ने के खेतों के बीच तेंदुए का बड़ा कुनबा भी हो सकता है। दुर्गेश तौ बेहोश होइगे..इनका हलाएन डोलायन तब उठे हम औ बिरजेश म्याढ़ पर घास काटित रहै। चंदन ख्यातम भीतर चले गे रहैं। अत्तिन देर म पाती खड़भड़ानि बड़ी ज्वार सने तौ देखेन। तेंदुआ मूड़ पकरे चंदन क्यार झकझवारत रहै। हम चिल्लानेन तकै हमका बूढ़ आय गै औ हम बेहोश होइकै गिरि गेन। फिर तनिक देर बाद होसु आवा तौ बिरजेसौ चिल्लात रहैं। तौ हमहू चिल्लाय लागेन।

दुर्गेश, प्रत्यक्षदर्शी दुर्गेश देखिन तेंदुआ कइहाँ तौ देखतै खन बेहोश होई गे। इनका हलाएन डोलायन खूब तौ होसु आवा। फिर मौसिया कइहाँ हांक देत भागेन। तले प्यारे दौव्वा आइगे। वहे तीर दुई तीन बखरी बनी हैं। हुवाँ बताएन तौ सब जने आइगे। तौ तेंदुआ और ऊके बच्चा भाग गे। ब्रजेश, प्रत्यक्षदर्शी


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