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गुरु बिन भवनिधि तरहि न कोई ..

गुरु पूर्णिमा के पर्व पर शिष्यों ने किया गुरु पूजन। गायत्री शक्तिपीठ के अलावा विभिन्न पूजा पीठों पर गुरु शिष्य परंपरा के तहत शिष्यों ने अपने गुरुजनों का पूजन किया। साथ ही हवन यज्ञ इत्यादि भी किया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 05 Jul 2020 10:12 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2020 10:12 PM (IST)
गुरु बिन भवनिधि तरहि न कोई ..
गुरु बिन भवनिधि तरहि न कोई ..

लखीमपुर : आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को मनाया जाने वाला गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा पर्व श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। इस मौके पर गायत्री शक्तिपीठ के अलावा विभिन्न पूजा पीठों पर गुरु शिष्य परंपरा के तहत शिष्यों ने अपने गुरुजनों का पूजन किया। साथ ही हवन यज्ञ इत्यादि भी किया।

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राजा जन्मेजय की यज्ञ स्थली देवकली के चंद्रकला पीठ पर बटुक ब्राह्मणों द्वारा गुरु पूजन किया गया। वहीं पांडवों के वनवास काल के साक्षी अंतरवेद जंगल में आश्रम पर भी गुरु पूजन किया गया। गुरु पूजन को लेकर देवकली तीर्थ पर चंद्रकला आश्रम में आचार्य प्रमोद दीक्षित ने यज्ञ कराया। उनके साथ में आचार्य राजेश व अन्य लोग भी मौजूद रहे। बटुक ब्राह्मणों को यज्ञ कराने के साथ भवानी प्रसाद उपाध्याय के चित्र पर माल्यार्पण किया गया। इस दौरान शिष्य परंपरा का निर्वाह करते हुए सभी ने पंडित भवानी प्रसाद उपाध्याय के चित्र की आरती उतारी। आचार्य प्रमोद ने गुरु शिष्य परंपरा के बारे में बटुक ब्राह्मणों को समझाते हुए कहा कि गुरु ब्रह्म से मिलाने वाली शक्ति है। अखिल विश्व गायत्री परिवार के द्वारा गुरु शिष्य परंपरा के तहत यज्ञ का आयोजन किया गया। शारीरिक दूरी रखते हुए यहां सुबह आठ बजे से शुरू हुआ यज्ञ 10:30 बजे तक चला। 11 बजे प्रसाद वितरण किया गया। उदय सिंह तथा अन्य लोगों ने गायत्री शक्तिपीठ पर हवन कराया। हवन के दौरान बड़ी संख्या में गायत्री भक्तों ने भागीदारी की। गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य के नाम की आरती की तथा बताया कि गुरु शिष्य परंपरा जीवन को सन्मार्ग पर लगाने के लिए है। गुरु ही है जो शिष्य को सही मार्ग दिखाता है। इसके अलावा कथा व्यास आचार्य पंकज कृष्ण शास्त्री ने श्रीरामचरितमानस के माध्यम से समझाया गुरु बिन भवनिधि तरहि न कोई, जो बिरंचि संकर सम होई।


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