तराई की बाढ़ आपदा न बिगाड़ दे चुनाव का सियासी समीकरण
अपनी-अपनी सीट पर दमखम लगा रहे सभी विधानसभा प्रत्याशी।
पवन जयसवाल, बिजुआ (लखीमपुर): विधानसभा चुनाव के इस दौर में सभी विधानसभा प्रत्याशी अपनी अपनी सीट पर दमखम लगा रहे हैं। 2012 के विस चुनाव में लखीमपुर जिले से भाजपा ने आठों विधानसभा सीटों पर अपनी जीत दर्ज की थी। अब पुन: चुनाव का बिगुल बजने के उपरांत सभी प्रत्याशी अपना-अपना दमखम लगा रहे हैं।
धौरहरा सीट से 2017 में भाजपा का दामन पकड़ सत्ता में आए बाला प्रसाद अवस्थी ने भाजपा छोड़ सपा का दामन थाम लिया, लेकिन अन्य सीटों पर विधायक विकास के नाम पर तो कहीं पार्टी की साख के नाम पर ताल ठोकने के लिए टिकट का इंतजार कर रहे हैं। पलिया विधानसभा की मुख्य समस्या बाढ़ की समस्या है सरकार ने बाढ़ से निजात के लिए कितना काम किया इसका हिसाब तराई के कटान पीड़ितों के पास है। प्रशासन की ओर से इस आपदा पर किस हद तक अंकुश लग पाया यह एक बड़ा सवाल है और इस सवाल पर उन्हें आम जनमानस का कितना वोट खींचेगा यह तराई की जनता पर निर्भर है। इस सवाल की पड़ताल में बझेड़ा, कुंवरपुर, दंबलटांडा, ढकिया, पलियापुरवा, जंगल नंबर सात जैसे दर्जनों गांव जो बीते कई दशकों से कटान की तबाही झेल रहे हैं। बाढ़ से शासन-प्रशासन जनप्रतिनिधियों ने इसके पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं कराए और साल दर साल तराई की यह भयावह स्थिति बाढ़ में सैकड़ों एकड़ जमीन फसलें घर सहित बर्बाद करते हुए हर वर्ष आगे बढ़ रही ऐसे में इस तराई के इलाकों में बसे ग्रामीणों में एक अलग संदेश की कड़ी जुड़ रही है। दशकों पुरानी इस समस्या पर अगर जिम्मेदार सचेत होते तो इस तबाही से अब तक निजात मिल जाती। ऐसे में वर्तमान समय में चल रहे विधानसभा चुनाव में विकास के नाम पर वोट मांगने वाले तराई इलाके के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र की जनता तो कहीं बाढ़ की आपदा के नाम पर विकास का ठप्पा लगाने वालों के कहीं समीकरण को न बिगाड़ दे।