सूखे जंगल बन गए बारूद के ढेर
तराई के हरे-भरे जंगल इन दिनों गर्मी के कारण बारूद के ढेर बन गए हैं।
लखीमपुर : तराई के हरे-भरे जंगल इन दिनों गर्मी के कारण बारूद के ढेर बन गए हैं। जंगल में पानी की कमी और आग लगने की बढ़ती घटनाओं की वजह से बाघ, तेंदुआ, हिरण, सांभर, बारहसिघा समेत वन्यजीव आबादी का रुख कर रहे हैं। हालात इतने बुरे हैं कि अगर बारिश न हुई तो आग की घटनाओं से जंगल स्वाहा हो जाएगा।
जंगल में इनदिनों पानी सबसे आवश्यक चीज है, जो न तो वन्यजीवों के लिए बची है और न ही आग बुझाने के लिए। दुधवा नेशनल पार्क, किशनपुर सेंचुरी, मैलानी, भीरा या महेशपुर जैसे घने जंगलों के ताल-तलैया भी सूख चुके हैं। टैंकरों से घने जंगल में पानी ले नहीं जाया जा सकता। इसलिए वनकर्मी खुद ही पीपों से पानी ढो रहे हैं। वन विभाग द्वारा जंगल में जगह-जगह कृतिम वाटर होल बनाए गए थे, ताकि वन्यजीवों को भरपूर पानी मिलता रहे, लेकिन ये वाटर होल भी सूखे पड़े हुए हैं। दुधवा से लेकर महेशपुर के जंगलों में प्रतिदिन 12 से 15 स्थानों पर आग लग रही है। वन्यजीव पहले ही भीषण गर्मी में प्यास से परेशान हैं, आग की तपन के कारण उनका जंगलों में रहना और कठिन हो गया है।
सेटेलाइट की तस्वीरें रोज जंगल की आग पर काबू पाने के लिए किए गए इंतजामों पर भारी पड़ रही हैं। सैकड़ों हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले जंगल में पानी की सप्लाई के लिए दुधवा पार्क में पांच से सात, बफरजोन में चार और दक्षिण खीरी में दो से तीन टैंकर हैं। अधिकारियों का दावा है इन टैंकरों से वन्यजीवों के वाटर होल भरे जा रहे हैं, लेकिन जंगल में लगी आग को बुझाने के लिए संसाधनों की कमी है।
डीडी डॉ. अनिल पटेल कहते हैं कि वन्यजीव अभी जंगल में ही हैं। उनके लिए पानी की पर्याप्त व्यवस्था है। आग बुझाने के लिए टैंकरों से पानी नहीं ढोया जा सकता। महेशपुर के जंगल में लगी विकराल आग गर्मी के दिनों में वनों को आग से बचाने के लिए एहतियातन किए जाने वाले सारे उपाय यहां नाकाफी साबित हुए हैं। शनिवार को महेशपुर के जंगल में लगी आग ने विकराल रूप ले लिया। ग्रामीणों के सहयोग से आग पर काबू पाया जा सका। आग बुझाने के प्रयासों में वन कर्मी नरेंद्र कुमार की बाइक जल गई।
महेशपुर जंगल के कंपार्टमेंट नंबर 11, 12, 13 में अज्ञात कारणों के चलते शनिवार को आग लग गई, जो कि पश्चिम से पूरब की ओर निरंतर बढ़ रही थी। आग से सबसे बड़ा खतरा जंगल के किनारे तैयार खड़ी गेहूं की फसल को लेकर था। क्योंकि जंगल के बाहर आग के निकलने से उसकी जद में गेंहू की पकी फसल आ सकती है। ऐसे में किसान भी अपनी फसलों को बचाने के लिए आग बुझाने को आ गए। वन महकमा आधे अधूरे संसाधनों के सहारे आग बुझाने की मुहिम में जुट गया। कुछ घटों बाद सार्थक परिणाम सामने आ गए। रेंजर मोहम्मद मोबीन आरिफ ने बताया कि आग से किसी वन्यजीव की मौत या जनहानि नहीं हुई है।