इजराइल की तरह अभेद्य होने से रह गई दुधवा टाइगर रिजर्व की सुरक्षा
लेजर बीम तकनीक से पार्क की सीमा को किया जाना था सुरक्षित बजट के अभाव में डीआरडीओ से वार्ता के बाद भी नहीं शुरु हो सका काम।
हरीश श्रीवास्तव, पलियाकलां (लखीमपुर): दुधवा टाइगर रिजर्व की सुरक्षा को अभेद्य बनाने की योजना बजट के अभाव में परवान नहीं चढ़ सकी। पार्क की सुरक्षा इजराइल देश की तरह अभेद्य होने वाली थी जिसके सुरक्षा कवच को कोई भेद नहीं सकता था। पर कोरोना संक्रमण के कारण स्वीकृत बजट सरेंडर करने के बाद वापस नहीं मिल सका जिससे पायलेट प्रोजेक्ट ही शुरू नहीं हो सका। दुधवा टाइगर रिजर्व की सुरक्षा के लिए सीमा पर लेजर फैंसिग की जानी थी। फैंसिग में लेजर बीम तकनीक का उपयोग कर उसे अभेद्य बनाया जाना था। जिससे पार्क की बेशकीमती वन संपदा और दुर्लभ वन्यजीव सुरक्षित रह सकते थे। लेजर बीम तकनीक अ²श्य दीवार की तरह होती है। इसे भेदने का जब कोई प्रयास करता तो सिस्टम से जुड़े अधिकारियों के मोबाइल फोन पर एलार्म बज उठता साथ ही मौके पर लगे कैमरों में उसकी तस्वीर भी आ जाती। वह चाहे कोई वन्यजीव होता या फिर शिकारी अथवा अवैध प्रवेशी। लेजर फैंसिग का पायलट प्रोजेक्ट स्वीकृत हो चुका था। पायलट प्रोजेक्ट के तहत पहले बेलरायां डिवीजन में पांच किलोमीटर तक लेजर फैंसिग की जानी थी। अगर तकनीक सफल रहती तो पूरे पार्क की सीमा पर फैंसिग की जानी थी। पायलेट प्रोजेक्ट के लिए पार्क को 50 लाख की धनराशि भी मिल गई थी, लेकिन कोरोना काल में काम न हो पाने के कारण बजट को इस शर्त के साथ सरेंडर कर दिया गया कि माहौल ठीक होने पर जब काम शुरू होगा तो बजट का आवंटन पुन: कर दिया जाएगा। इस प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी रक्षा एवं अनुसंधान विकास संगठन डीआरडीओ को दी गई थी। उसमें आइआइटी कानपुर का भी सहयोग लिया जाना था। दुधवा टाइगर रिजर्व प्रदेश का एकलौता ऐसा जंगल क्षेत्र बनने जा रहा था जिसकी सुरक्षा में लेजर तकनीक अपनाई जाने वाली थी। इससे पहले सोलर फैंसिग के जरिए पार्क के वन्यजीवों को जंगल से बाहर निकलने से रोकने का प्रयास किया गया था, लेकिन वह पूर्णत: सफल नहीं हुई थी। हाथियों ने सोलर फेंस को कई जगह से डैमेज कर दिया था। इसके बाद लेजर फेंस की तकनीक अपनाने का निर्णय लिया गया था, लेकिन सरेंडर बजट पुन: आवंटित न होने से काम शुरू ही नहीं हो सका।
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क्या कहते हैं जिम्मेदार
दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड निदेशक संजय पाठक ने बताया कि पार्क की सुरक्षा काफी बड़ी चुनौती है। जंगल से बाहर आने वाले वन्यजीवों का मानव से संघर्ष भी अहम मुद्दा है। बेहतर सुरक्षा और संघर्ष को शून्य करने के लिए लेजर बीम तकनीक से पार्क की सीमा संरक्षित की जानी थी। पायलेट प्रोजेक्ट स्वीकृत भी हो गया था लेकिन, कोरोना के कारण बजट सरेंडर करना पड़ा था जो दोबारा नहीं मिल सका। इसके लिए डीआरडीओ को अधिकृत किया गया था, लेकिन बजट के अभाव में योजना परवान नहीं चढ़ सकी।