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पर्यावरण के लिए पौधों का चयन हो खास

पर्यावरण के लिए फायदेमंद पाकड़ गूलर पीपल की जगह रोप रहे सागौन यूकेलिप्टस और पापुलर। पौधा चयन के साथ अधिकारी वन संहिता के निर्देशों का पालन भी नहीं कर रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 04 Jul 2020 11:49 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2020 06:07 AM (IST)
पर्यावरण के लिए पौधों का चयन हो खास
पर्यावरण के लिए पौधों का चयन हो खास

लखीमपुर: पौध प्रजातियों के चयन से भी काफी हद तक पर्यावरण पर असर पड़ा है। पाकड़, गूलर, पीपल, बरगद पर्यावरण के अनुकूल हैं, लेकिन उनकी जगह यूकेलिप्टस, पापुलर, चितवन जैसे पौधे रोपने से न सिर्फ जैव विविधता का क्षरण हो रहा है बल्कि, जीव जंतुओं पर भी बुरा असर पड़ रहा है।

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मौजूदा समय में पौधारोपण अभियान में कंजी, केसिया श्यामिया को भी शामिल किया गया है। कंजी का पौध तैयार तो हो जाता है, लेकिन बाद में इसका कोई उपयोग नहीं रहता। शीशम लगभग नर्सरियों से गायब हो गया है, उसकी जगह सागौन ने ले ली है। सागौन विदेशी प्रजाति का पौधा है। यह स्थापित तो बेहतर ढंग से हो जाता है, लेकिन अन्य दूसरे पौधों को पनपने नहीं देता। रेत व बालू-मिट्टी वाले स्थानों पर खैर और शीशम के पौधों का रोपण होना चाहिए, जबकि अधिकारी हर प्रजाति के पौधों को अभियान में शामिल कर रहे हैं। जलभराव वाले क्षेत्रों में अर्जुन का पौध बेहद उपयोगी है। इसका औषधीय उपयोग भी है। पौधारोपण अभियान में जामुन, इमली, महुआ जैसे पौधे काफी कम हो गए हैं। इन पौधों को सड़क, नहर के किनारे लगाने से पशु पक्षियों को भी संरक्षण मिलता है। वन संहिता के निर्देशों का पालन नहीं

पौधा चयन के साथ अधिकारी वन संहिता के निर्देशों का पालन भी नहीं कर रहे हैं। भौतिक सत्यापन में फर्जीवाड़ा हो रहा है। ऐसे पौधे उगाए जा रहे हैं जो एक मीटर से भी कम हैं। जिससे इन पौधों की जीवितता पर असर पड़ रहा है। किसानों को कार्ययोजना स्वीकार नहीं

पौधारोपण अभियान के लिए सरकार की ओर से जो कार्ययोजना तैयार की जा रही है। वह किसानों को रास नहीं आ रहा। किसानों की पसंद की पौध उन्हें नहीं मिल पा रही है, जो पौधे नर्सरी में उगाए जाते हैं वही पौधे उन पर थोप दिए जाते हैं। विशेषज्ञ की सुनिए

पूर्व रेंजर अशोक कश्यप का कहना है कि पौधों की उपयोगिता को देखते हुए ही कार्ययोजना तैयार की जानी चाहिए। फर्जीवाड़ा रोकने के लिए जीपीएस कोऑर्डिनेट बनाई जाए, जिससे लगातार मॉनीटरिग होती रहे। वन विभाग में जब तक फर्जी रिपोर्टिंग नहीं थमेगी तब तक कागजी रिकॉर्ड से पर्यावरण को नहीं संतुलित किया जा सकता।


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