राजेश्वर बांट रहे स्वर्ण रेखा आम की मिठास
कुशीनगर: तीन दशक से पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रहे सुसवलिया गांव के राजेश्वर पाठक ।
कुशीनगर: तीन दशक से पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रहे सुसवलिया गांव के राजेश्वर पाठक अपनी नर्सरी से पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध आम स्वर्ण रेखा और हिमसागर की मिठास बांट रहे हैं। दुर्लभ प्रजाति के पौधों की नर्सरी तैयार करने वाले पाठक की खुद का बाग भी है। वह नर्सरी से तैयार पौधे लोगों को भी उपलब्ध कराते हैं। उन्होंने आम, अमरूद, नीबू, पपीता सहित दर्जनों प्रजाति के सैकड़ों पौधों का रोपण किया है। मौजूदा समय में उनके बाग में फलों से लदी लीची व आम की डालियां लोगों को आकर्षित कर रही हैं। पडरौना नगर से करीब पांच किमी दूर रामकोला रोड के किनारे स्थित पौधशाला में 58 वर्षीय पाठक द्वारा करीब एक एकड़ भूमि पर विभिन्न प्रजाति के पौधों की नर्सरी तैयार की जाती है। उनके पौधशाला में दुर्लभ प्रजाति के देशी व विदेशी पौधों की बहुलता है। बकौल पाठक वर्ष 1979 में स्नातक करने के बाद देहरादून में एक प्राइवेट कंपनी में जाब कर रहे थे। वहां स्थित फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट से पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा मिली। वर्ष 1998 में अपने गांव में पौधशाला की शुरुआत की। यह कुशीनगर जनपद का पहला रजिस्टर्ड पौधशाला है। कहते हैं कि पेड़-पौधे केवल पर्यावरण की रक्षा ही नहीं करते, जीवन को स्वस्थ व जीवंत भी करते हैं। इनमें भी जान होती है, जरूरत है इसे महसूस करने की। मेरी बगिया ही मेरा जीवन है, हरियाली फैलाने में दो दशक बिता दिया, अब अंतिम सांस तक इन्हीं के बीच रहूंगा।
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बांबे ग्रीन सबुजा व चौसा की भरमार
-पौधशाला से करीब एक किमी पश्चिम रामकोला रोड और रेलवे लाइन के बीच में राजेश्वर की करीब 25 एकड़ खुद की भूमि है। बीच में पांच एकड़ में पोखरे की खोदाई करा कर जल संरक्षण के साथ ही किनारे-किनारे आम के सैकड़ों पौधे लगाए गए जो अब पेड़ बन चुके हैं। पाठक के बाग में बांबे ग्रीन सबुजा, कृष्णभोग, चौसा, स्वर्ण रेखा, हिमसागर, मल्लिका, आम्रपाली, गवरजीत, सफेदा के अलावा आम की कई प्रजातियों के पेड़ फलों से लदे पड़े हैं। लीची के पेड़ों में फलों की लाली लोगों का मन ललचा रही है।