बुद्ध के निर्वाण बाद द्रोण ब्राह्मण ने मध्यस्थता कर टाली थी युद्ध की स्थिति
-2500 वर्ष पूर्व कुशीनगर में हुआ था बुद्ध की अस्थियों का वितरण -हुई विशेष पूजा कोरोना महामारी की समाप्ति के लिए हुआ रतन सुत्त का पाठ
जागरण संवाददाता, कुशीनगर: 2500 वर्ष पूर्व ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को कुशीनगर में गौतम बुद्ध के महानिर्वाण के बाद उनकी अस्थियों का बंटवारा हुआ था। बुधवार को इस ऐतिहासिक दिवस को याद करते हुए कुशीनगर में बुद्ध के संभावित धातु वितरण स्थल पर बौद्ध अनुयाइयों ने लॉकडाउन के दायरे में रहकर विशेष पूजा कर मानवता के कल्याण की कामना की। अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के पूर्व अध्यक्ष डॉ. भिक्षु नंद रतन व भिक्षु महेंद्र ने तिथि की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व बुद्ध का वैशाख पूíणमा को कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त हुआ था। मल्ल राजाओं व उनके गणों ने एक सप्ताह तक उनके शरीर की पूजा की। उसके बाद हिरण्यवती नदी के किनारे रामाभार में अंतिम संस्कार हुआ। सप्ताह भर चिता जलती रही। चिता के शांत होने पर धातु अवशेष को मल्लों के सभागार में एक सप्ताह रखकर पूजा किया गया।
इस दौरान उत्तर भारत के तत्कालीन गणराज्यों के राजा या उनके प्रतिनिधि सेना के साथ कुशीनगर पहुंच गए। उनका कहना था कि धातु अवशेष हमें चाहिए। युद्ध की स्थिति उत्पन्न होने पर द्रोण ब्राह्मण ने धातु अवशेष को राजगिरि के अजातशत्रु, वैशाली के लिच्छवी, कपिलवस्तु के शाक्य, अलकप्प के बुली, रामग्राम के कोलिय, वेठदीप के ब्राह्मण, पावा और कुसीनारा के मल्लों में बांटा था, जिसे लेकर अपने राज्य को लौटे और धातु अवशेष पर स्तूप बनाकर बुद्ध की पूजा शुरू की। इस मौके पर श्रीलंका बुद्ध विहार कुशीनगर में विशेष पूजा हुई। साथ ही कोरोना महामारी की समाप्ति के लिए रतन सुत्त का पाठ भी हुआ। पूजा में भंते आलोक, भंते मुलायम, भंते सुमित, भंते खेमाचारा, भंते नन्दी, भंते यशपाल, भंते तेजेंद्र, भंते गांधी, सुबोध कुमार, बृजेश कुशवाहा, आदित्य, गौतम आदि उपस्थित रहे।