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गरिमा लौटाने के लिए करते हैं सहभोज

कुशीनगर का दलित व मुसहर समाज दशकों से छुआछूत के कारण उपेक्षित रहा है। परिवेश बदला, परिस्थितियां बदली तो समानता के अधिकार की बात उठने लगी। इन लोगों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता व स्वयंसेवी संगठन आगे आने लगे।

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 Jan 2019 11:29 PM (IST)Updated: Sun, 20 Jan 2019 11:29 PM (IST)
गरिमा लौटाने के लिए करते हैं सहभोज
गरिमा लौटाने के लिए करते हैं सहभोज

कुशीनगर: कुशीनगर का दलित व मुसहर समाज दशकों से छुआछूत के कारण उपेक्षित रहा है। परिवेश बदला, परिस्थितियां बदली तो समानता के अधिकार की बात उठने लगी। इन लोगों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता व स्वयंसेवी संगठन आगे आने लगे। उन्हीं में से उदित नारायण डिग्री कालेज के भूगोल विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. सीबी ¨सह हैं। जिन्होंने दलित व मुसहर समाज के लोगों की गरिमा लौटाने के लिए एक मुहिम शुरू की, जो सहभोज के माध्यम से तीन गांवों तक पहुंच गई है। इसके गवाह राष्ट्रीय युवा योजना के निदेशक डॉ एसएन सुब्बाराव बने, जिन्होंने वर्ष 1993 में जंगल बेलवा में दलित व मुसहरों की कतार में बैठ भोजन किया था।

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बीते वर्ष जुलाई में पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रो. विनोद सोलंकी दलितों व मुसहरों के साथ सहभोज में शामिल हुए। अपने गुरु प्रो. शैलनाथ चतुर्वेदी व डा. एसएन सुब्बा राव की प्रेरण से प्रभावित होकर डा. ¨सह विवेकानंद युवा कल्याण केंद्र के माध्यम से तीन गांवों की तस्वीर बदल चुके हैं। वे दलितों व मुसहरों के लिए शिक्षा, शिविर लगा कर स्वास्थ्य सुविधा दिलाने के साथ ही स्वरोजगार के लिए महिलाओं को समूह का गठन करने को प्रेरित करते हैं।

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मुख्यधारा से जुड़े यह लोग

-गांव बंधूछपरा निवासी तूफानी व सुदामा, बेलवा जंगल के सुबाष, कन्हैया, मोतीचंद समेत दर्जनों लोगों को मुख्यधारा से जोड़ा, तो गांव ¨वदविलया में 25 महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के माध्यम से रोजगार शुरू करने की प्रेरणा दी।

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गुरु की प्रेरणा से लिया संकल्प

-डॉ सीबी ¨सह ने बताया कि गुरुजनों से प्रेरणा लेकर वर्ष 1985 में लिए गए संकल्प से तीन गांवों की तस्वीर बदल चुकी है। लोग मेहनत-मजदूरी करते हैं। इन गांवों के सभी बच्चे स्कूल जाते हैं। गांव में साफ-सफाई देख यह नहीं लगता कि कोई दलित अथवा मुसहर बस्ती में आए हैं।


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