समतल खेत बढ़ाएगा गेहूं का उत्पादन, मिट्टी की जांच के बाद करें उर्वरकों का प्रयोग तो बढ़ेगी उपज
दीपावली के बाद किसान गेहूं के खेत तैयार करने में जुट जाते हैं। पलेवा और इसके बाद गेहूं की बुआई की जाती है। हल्की ठंड के साथ ही किसान खेत में बुआई करने लगता है। 20- 25 नवंबर का समय बुआई के लिए सबसे उपयुक्त होता है। इसके बाद खेत की बुआई किसान के लिए ज्यादा लाभकारी नहीं रहती। कृषि वैज्ञानिक भी 20-25 नवंबर का समय गेहूं बुआई के लिए सबसे बेहतर मानते हैं।
कौशांबी। दीपावली के बाद किसान गेहूं के खेत तैयार करने में जुट जाते हैं। पलेवा और इसके बाद गेहूं की बुआई की जाती है। हल्की ठंड के साथ ही किसान खेत में बुआई करने लगता है। 20- 25 नवंबर का समय बुआई के लिए सबसे उपयुक्त होता है। इसके बाद खेत की बुआई किसान के लिए ज्यादा लाभकारी नहीं रहती। कृषि वैज्ञानिक भी 20-25 नवंबर का समय गेहूं बुआई के लिए सबसे बेहतर मानते हैं।
गेहूँ, जौ, आलू, चना, मसूर, अलसी, मटर व सरसों रबी की प्रमुख फसलें है। इनमें से किसान सबसे अधिक गेहूं की बुआई करता है। गेहूं के बेहतर उत्पादन के लिए जरूरी है कि खेत अच्छे से तैयार किया जाए। पुरानी कहावत है कि गेहूं के खेत में यदि मिट्टी का मटका ऊपर से छोड़ा जाए तो वह टूटे नहीं। इसका सीधा सा मतलब है कि गेहुं बोने से पहले खेत में कम से कम तीन से चार बार जुताई किया जाना चाहिए। जिससे मिट्टी पूरी तरह भुरभुरी हो जाए। खेत में नमी की मात्र इतनी होनी चाहिए की जुताई के समय भी मिट्टी चिपके नहीं। इसके बाद उचित मात्र में डीएपी व पोटाश का प्रयोग करते हुए हम सीड ड्रिल या फिर छिटकवा विधि से खेत में गेहूं की बुआई कर सकते हैं। देरी से घटेगा उत्पादन
गेहूं की बुआई 25 नवंबर तक हो जानी चाहिए। यदि किसान इसके गेहूं की बुआई करते हैं तो उनका उत्पादन एक किलो प्रतिदिन के अनुपात में कम होता है। कृषि वैज्ञानक डा. मनोज कुमार सिंह का दावा है कि देरी से बुआई करने में मौसम बेहतर नहीं रहता। ठंड अधिक होने से अंकुरण क्षमता प्रभावित होती है। इसका सीधा प्रभाव उत्पाद पर पड़ता है। फसल कटाई तक इस देरी के अंदर को पाटा नहीं जा सकता। जिससे किसान का नुकसान होता है। सीड ड्रिल से करें गेहूं की बुआई
गेहूं की बुआई के लिए बेहतर है कि हम सीड ड्रिल का प्रयोग करें। इससे गेहूं का बीज गहराई तक जाता है। जो मजबूती के साथ प्रतिकूल मौसम में भी खड़ा रहता है। इससे उसे अधिक मात्रा में उर्वरा शक्ति मिलती है। जिससे दाना मोटा व स्वास्थ्य होता है। इस विधि से गेहूं की बुआई में खाद व बीज कम लगता है। जबकि आम तौर पर किसान छिटकवा विधि से गेहूं की बुआई करता है। जिसमें बीज व उर्वरक दोनों का अधिक प्रयोग होता है। जो खेत व मिट्टी के लिए बेहतर नही है। कैसे करें खेत तैयार
गेहूं के लिए यह समय सब से बेहतर है। इन दिनों खेत में गोबर की खाद डालने के बाद जुताई कराते हुए किसान खेत का पलेवा कर दें। आठ से दस दिनों में खेत जुताई के तैयार होगा। हर हाल में 25 नवंबर तक खेत में बुआई कर दें। इससे पहले भी यदि खेत तैयार होता है तो किसान बुआई कर सकते हैं। खेत को समतल करते हुए मिट्टी की जांच के बाद उर्वरक का प्रयोग किया जाए। खेत की तीन से चार जुताई व नमी बीज के बेहतर अंकुरण के लिए जरूरी है। खेत में नमी की मात्रा ऐसी होनी चाहिए कि मिट्टी जुताई के दौरान भुरभुरी रहे। एक बीघे में उपयोग किए जाने वाली खाद व बीज व अन्य
पलेवा से पूर्व के खेत में एक से डेढ़ ट्राली गोबर की खाद का प्रयोग करें। इसके बाद जुताई कराते हुए खेत का पलेवा कर दें। पलेवा के बाद खेती की तीन से चार जुताई कराएं। एक बीघे खेत में सीड ड्रिल से बुआई के लिए कम से कम 30 किलो गेहूं का बीज, 30-35 किलो डीएपी व पांच किलो पोटाश का प्रयोग करें। छिटकवा विधि से बुआई में 35-40 किलो बीज, 40-50 किलो डीएपी व पांच किलो पोटाश का प्रयोग किया जाए। प्रति एक किलो की मात्रा में दो ग्राम कार्बेंडा जिन या फिर बावस्टिग से बीज का शोधन किया जाए।