जल संरक्षण : अभी नहीं चेते तो बनेंगे भविष्य के गुनहगार
पानी अनमोल है। इसके पैदा नहीं किया जा सका और न ही लैब में बनाया जा सकता है। पीने वाला पानी सिर्फ और सिर्फ धरा की कोख से मिल सकता है। इसके लिए जरूरी है कि इसका संरक्षण किया जाए। संरक्षण पानी को रोकने से होगा। उसके नदी व नाले में बह जाने से धरा की कोख नहीं भरेगी। जरूरी है कि हम पानी का संरक्षण करें। यह संरक्षण तालाब व अन्य स्थानों में पानी को रोकने से ही संभव है। जिस प्रकार से लगातार तालाबों पर कब्जे हो रहे हैं। यही हाल रहा तो जल संरक्षण करना कठिन होगा। धरा की प्यास नहीं बुझने से आने वाले दिनों में पानी का संकट गहराए और हम सब भविष्य के गुनाहगार बनेंगे।
जासं, कौशांबी : पानी अनमोल है। इसके पैदा नहीं किया जा सका और न ही लैब में बनाया जा सकता है। पीने वाला पानी सिर्फ और सिर्फ धरा की कोख से मिल सकता है। इसके लिए जरूरी है कि इसका संरक्षण किया जाए। संरक्षण पानी को रोकने से होगा। उसके नदी व नाले में बह जाने से धरा की कोख नहीं भरेगी। जरूरी है कि हम पानी का संरक्षण करें। यह संरक्षण तालाब व अन्य स्थानों में पानी को रोकने से ही संभव है। जिस प्रकार से लगातार तालाबों पर कब्जे हो रहे हैं। यही हाल रहा तो जल संरक्षण करना कठिन होगा। धरा की प्यास नहीं बुझने से आने वाले दिनों में पानी का संकट गहराए और हम सब भविष्य के गुनाहगार बनेंगे।
एक जमाना था। गांव का नाम आते ही पानी से लबालब तालाब और गांव के बगल से गुजरी नहर में उफनाती पानी की तस्वीरें सामने होती थीं। गांव के बाहर खेतों की बात करें तो नालियां में पानी और यहां वहां उगे पेड़ पौधे की तस्वीर उभरती थी, लेकिन समय के साथ बदलाव आने लगा। तालाब पर लोगों ने कब्जा कर लिया। ऐसे में गांव का पानी नाली से नाला और फिर नदियों माध्यम से बाहर जाने लगा। नहरों में पानी की स्तर कम हो गया। गांव के बाहर बनी सिचाई की नालियां गायब हो गई। इनका स्थान प्लास्टिक के पाइप ने ले लिया। पूर्व में प्रचलित सभी माध्यम जल संरक्षण को बढ़ावा देने वाले थे, लेकिन आधुनिकता में अपनाए गए माध्यम जल संचयन के लिए घातक थे। तालाब पर कब्जा होने से जल संचय नहीं हो रहा है। इससे शहरी के साथ ही साथ ग्रामीण क्षेत्रों में जल स्तर लगातार कम होता जा रहा है। नालियां खत्म होने से उनके किनारे के पेड़ पौधे सूखने लगे हैं। इनको बचाने के लिए जरूरी है कि पुरानी परंपरा को जीवित रखा जाए। गांव में जो तालाब पोखर है। उनको पुन: जीवत करने की जरूरत है। इनमें इमारत नहीं कमल खिलाने की जरूरत है। जरूरी है कि जल संरक्षण की परंपरा जो पुरखों ने बनाई थी। उसके अपनाया जाए। इसके बिना जीवन संभव नहीं है। यदि धरा प्यासी रही तो हम भविष्य के गुनहगार होंगे।