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अफ्रीका से लौटे गांव, अब दूसरों को दे रहे रोजगार

देश की माटी और इसकी खुशबू आप कहीं भी रहें भुलाए नहीं भूलती। देश की माटी के इसी लगाव ने हजारों किमी दूर अफ्रीका में बैठे सत्यप्रकाश को अपने गांव बुला लिया। बहाना भले ही लॉकडाउन बना हो लेकिन सत्यप्रकाश ने गांव लौटकर एक दर्जन घरों में खुशियों का उजाला कर दिया। उनके प्रयास से आज गांव के एक दर्जन से अधिक युवक रोजगार पाकर अपनों के बीच खुशहाल हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 10:00 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 10:00 PM (IST)
अफ्रीका से लौटे गांव, अब दूसरों को दे रहे रोजगार
अफ्रीका से लौटे गांव, अब दूसरों को दे रहे रोजगार

पंकज करवरिया, नारा

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देश की माटी और इसकी खुशबू आप कहीं भी रहें भुलाए नहीं भूलती। देश की माटी के इसी लगाव ने हजारों किमी दूर अफ्रीका में बैठे सत्यप्रकाश को अपने गांव बुला लिया। बहाना भले ही लॉकडाउन बना हो, लेकिन सत्यप्रकाश ने गांव लौटकर एक दर्जन घरों में खुशियों का उजाला कर दिया। उनके प्रयास से आज गांव के एक दर्जन से अधिक युवक रोजगार पाकर अपनों के बीच खुशहाल हैं।

मंझनपुर विकास खंड के खोजवापुर निवासी सत्यप्रकाश सिंह के पिता रुद्रप्रताप सिंह पेशे से चिकित्सक हैं। दो बेटे व एक बेटी में सत्यप्रकाश सबसे बड़े हैं। गांव के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा के दौरान ही उनका चयन जवाहर नवोदय विद्यालय के लिए हो गया। वर्ष 1992 से 1999 तक उन्होंने नवोदय विद्यालय में शिक्षा पाई। यहां के संस्कार व शिक्षा सत्यप्रकाश के हर कदम पर नजर आ रही थी। 12वीं के बाद सत्यप्रकाश ने सेना में भर्ती होने का इरादा बनाया और वर्ष 2000 में एयरफोर्स कानपुर में पहली नियुक्ति पाई। इसके बाद चार साल तक लगातार सेना में रहे। सेना में रहते हुए अचानक इनकी तबियत खराब हुई। इसी बीच सत्यप्रकाश ने मेडिकल रिटायरमेंट ले लिया। आगे बढ़ने ओर पढ़ने का हौसला इनके अंदर बना रहा। इन्होंने पुणे विश्वविद्यालय से वर्ष 2006 में एमबीए किया और इसके बाद यूरेका फोर्बस, सोनी इंडिया, इंटेक्स और टैंबो मोबाइल्स में स्टेट हेड से लेकर कंट्री हेड तक कार्य किया। इसके बाद वह अफ्रीका चले गए। वहां नाइजीरिया में टैंबो मोबाइल्स में कंट्री हेड के रूप में काम किया। लगातार वर्ष 2006 से लेकर 2019 तक घर व गांव से बाहर रहते हुए सत्यप्रकाश को अपना जन्म भूमि याद आती रही। लॉकडाउन इसके लिए बहाना बन गया। वह नौकरी छोड़कर नाईजीरिया से गांव आ गए। इसके बाद इन्होंने अपने साथ ही अन्य लोगों को रोजगार देने की योजनाओं को लेकर मंथन किया। सत्यप्रकाश की मानें तो मत्स्य विभाग में तैनात क्षेत्रीय मत्स्य निरीक्षक सुनील कुमार सिंह ने उनको मत्स्य पालन से जुड़ी जानकारी दी। उनकी बात सत्यप्रकाश को समझ आ आई। उन्होंने अपने दोस्तों से इसे लेकर चर्चा की और मत्स्य पालन शुरू कर दिया। आज उनके साथ करीब एक दर्जन गांव के बेरोजगार युवक जुड़े हैं, जो गांव में ही रोजगार पाकर खुश हैं।

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गांव के एक तालाब से की शुरुआत

सत्यप्रकाश ने गांव के एक छोटे से तालाब में करीब तीन माह पहले मछिलयों का पालन शुरू किया। इसके बाद इन्होंने अपने खेत को तालाब बना दिया। इसके किनारों पर पौधारोपण कर दिया। इसके साथ ही इन्होंने अब मुर्गी पालन व गाय-भैंस पालन के लिए प्रयास शुरू कर दिया है। आने वाले दिनों में सत्यप्रकाश अपने दोस्तों के साथ मिलकर जैविक खाद को बढ़ावा देने के लिए किसानों के बीच वितरित करने की योजना बना रहे हैं।

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घर से बाहर रहते हुए मुझे गांव की याद लगातार आती रही। मन के किसी कोने में था कि गांव में रहकर कुछ करना है। यहां आया तो दोस्तों का सहयोग मिला। उनके साथ अपने लिए भी रोजगार तलाश लिया। अब यहीं रहकर कुछ करने की योजना है।

- सत्यप्रकाश सिंह


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