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..तो आधुनिकता छोड़ हल व बैल की याद दिला रहे वैज्ञानिक

कौशांबी आधुनिकता की चकाचौंध में मनुष्य भले ही अपने आपमें राहत महसूस कर रहा है लेि

By JagranEdited By: Published: Wed, 24 Feb 2021 10:40 PM (IST)Updated: Wed, 24 Feb 2021 10:40 PM (IST)
..तो आधुनिकता छोड़ हल व बैल की याद दिला रहे वैज्ञानिक
..तो आधुनिकता छोड़ हल व बैल की याद दिला रहे वैज्ञानिक

कौशांबी : आधुनिकता की चकाचौंध में मनुष्य भले ही अपने आपमें राहत महसूस कर रहा है, लेकिन बीते हुए लम्हों को याद करें तो घुंघरू के बीच खेतों में चलता हल और देशी खाद से उगने वाली फसल कहीं न कहीं स्वास्थ्य को बेहतर बनाती थी। अब रसायन खाद के प्रयोग से मृदा का जीवांश खत्म हो रहा है, वहीं पैदा होने वाला अनाज भी मानव जिदगी को कम करता जा रहा है। मृदा का स्वास्थ्य बचाने व मनुष्य की जिदगी बढ़ाने को जिले के एक मृदा वैज्ञानिक हल व बैल और देशी खाद के लिए किसानों को जागरूक कर रहे हैं।

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मृदा वैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार ने बताया कि माटी की बनावट बड़ी पेचीदा होती है, किसान अपने वर्षों के अनुभव के बावजूद भी अपने खेत की उर्वरा शक्ति का सही-सही अन्दाजा नहीं लगा सकता। किसी पोषक तत्व की कमी भूमि में धीरे-धीरे पनपती है। और पौधों पर जब कमी के चिन्ह प्रगट होते हैं, तब तक देर हो चुकी होती है और फसल की पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ चुका होता है। दूसरी ओर हो सकता है कि भूमि में किसी एक तत्व या तत्वों की मात्रा अत्यन्त पर्याप्त हो। परन्तु हम उस तत्व या तत्वों की निरन्तर सामान्य मात्रा में इस्तेमाल करते रहते हैं। ऐसा करना न केवल आर्थिक दृष्टि से हानिकारक हो सकता है। कहा कि तत्वों के आपसी असंतुलन वाली स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है। जिसका पौधों की पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। खेत की उर्वरा शक्ति का सही अंदाजा लगाना आवश्यक है। ताकि यह तय किया जा सके कि निरन्तर अच्छी पैदावार पाने हेतु खेत में कौन-कौन सा उर्वरक कितनी मात्रा में डालना चाहिए। यह तथ्य मृदा परीक्षण से सामने आया है। मिट्टी में कार्बन जीवाश, फास्फोरस तथा पोटाश की भारी कमी से उत्पन्न हुई तो समस्या काफी गंभीर हो सकती है। अधिक उत्पादन के चक्कर में बिगाड़ रहे सेहत

अधिक उत्पादन करने के चक्कर में किसान अपने खेतों में यूरिया और डीएपी खाद की मात्रा में प्रतिदिन इजाफा कर रहे हैं। जिसके कारण कृषि योग्य भूमि में धीरे-धीरे पोषक तत्वों की कमी होने लगी है। रसायन खाद के प्रयोग से भूमि के मित्र जीव-जंतु और सूक्ष्म जीव विलुप्त हो रहे हैं, साथ ही रसायन युक्त अनाज के सेवन से मानव स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। मृदा का जीवांश कार्बन भी घटकर 0.3 प्रतिशत के घटकर 0.4 प्रतिशत आ गया है। जिससे भूमि की जलधारण क्षमता कम होने के साथ ही उत्पादन भी कम हो रहा है। मृदा का स्वास्थ्य सुधारने के लिए किसानों को हल बैल से खेती करना होगा। मृदा वैज्ञानिक पिछले एक वर्ष से किसानों को जागरूक कर रहे हैं। इनकी प्रेरणा पर किसान किशुन लाल, ओम प्रकाश मौर्य, रामानुज, राम अभिलाष मौर्य, यदुराज सिंह, हल व बैल पर आधारित खेती कर रहे हैं।


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