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भूमिहीन है नेत्रहीन कुनबा, फिर भी मिला अमीरी का दर्जा

कहने को तो जरूरतमंद लोगों के लिए सरकार की ढेर सारी योजनाएं चल रही हैं मगर विकास खंड नेवादा के मुस्तफाबाद मजरा पिपरहा निवासी नेत्रहीन कल्लू मौर्या और उनका दिव्यांग (नेत्रहीन) परिवार किसी सरकारी योजना के लिए पात्र नहीं है। इस व्यक्ति के पास खेती के लिए भूमि नहीं है। इसके बाद भी गरीबी रेखा से ऊपर वाला राशन कार्ड बनाया गया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली व पेंशन योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। भीख मांग कर किसी तरह पेट की भूख मिटा रहे है। इस नेत्रहीन कुनबे की मदद करने के लिए प्रशासन व जन प्रतिनिधि आगे नहीं आ रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 12 Nov 2020 06:21 AM (IST)Updated: Thu, 12 Nov 2020 06:21 AM (IST)
भूमिहीन है नेत्रहीन कुनबा, फिर भी मिला अमीरी का दर्जा
भूमिहीन है नेत्रहीन कुनबा, फिर भी मिला अमीरी का दर्जा

कसेंदा : कहने को तो जरूरतमंद लोगों के लिए सरकार की ढेर सारी योजनाएं चल रही हैं, मगर विकास खंड नेवादा के मुस्तफाबाद मजरा पिपरहा निवासी नेत्रहीन कल्लू मौर्या और उनका दिव्यांग (नेत्रहीन) परिवार किसी सरकारी योजना के लिए पात्र नहीं है। इस व्यक्ति के पास खेती के लिए भूमि नहीं है। इसके बाद भी गरीबी रेखा से ऊपर वाला राशन कार्ड बनाया गया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली व पेंशन योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। भीख मांग कर किसी तरह पेट की भूख मिटा रहे है। इस नेत्रहीन कुनबे की मदद करने के लिए प्रशासन व जन प्रतिनिधि आगे नहीं आ रहे हैं।

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चायल तहसील के विकास खंड नेवादा अंतर्गत आने वाले मुस्तफाबाद मजरा पिपरहा गांव निवासी 75 वर्षीय कल्लू मौर्या भूमिहीन है। मात्र एक कमरे का झोपड़ी नुमा घास फूस के छप्पर का घर है। जिसमे उनकी पत्नी और बेटी रहती है। कल्लू जब पूर्ण रूप से स्वस्थ्य थे तो पत्नी शांति देवी के साथ गांव के किसान से जमीन बट्टे पर लेकर सब्जी की खेती करते थे। भगवान न उन्हें एक बेटी दी, जो बचपन से ही थी। उन्होंने हमेशा दूसरों की मदद की। जो उनसे कुछ मांग लेता वह कभी मना नहीं करते। जरूरतमंदों को खूब सब्जियां खिलाते। उम्र अधिक होने पर आंखों में मोतिया बिद हो गया। आंखों की पूरी रोशनी चली गई। पत्नी को भी मोतियाबिद है, लेकिन उसे थोड़ा दिखाई देता है। वह भींख मांगकर तीन लोगों का पेट भर रही है। सरकार वृद्धा पेंशन देती है, बीपीएल कार्ड धारक को राशन देती है, निश्शुल्क आवास देती है, लेकिन कल्लू को कभी इसका लाभ नहीं मिल पाया है। उनका, पत्नी और बेटी का नाम कभी भी सरकारी लाभार्थियों को सूची में नहीं आया है, यह सिस्टम के मुंह पर तमाचा है। बारिश होने पर छप्पर टपकता है। मजबूरी में उन्हें कष्ट में जीना पड़ता है। कल्लू बताते हैं कि उन्हें सरकारी योजना का लाभ कभी नहीं मिला है, इसका मलाल है। बाकी तो दुख उनके जीवन में ही लिखा है।

भूख की ललक में गुम हो गई आशा

कसेंदा : सरायंअकील के मुस्तफाबाद निवासी दिव्यांग कल्लू मौर्या ने बताया की छह नवंबर को उनकी बचपन से दिव्यांग (नेत्रहीन) पुत्री आशा भूख की ललक में बाजार की तरफ भीख मांगने गई हुई थी। शायद रास्ता भटक गई और वह अभी तक वापस नहीं लौटी । दिव्यांग कल्लू और उसकी पत्नी शांति बेटी की चिता में डूबे हैं। आंखों में रोशनी न होने के कारण कही तलाश भी नहीं कर सकते हैं।

गरीबी के चलते आशा के नहीं पीले हुए हाथ

कल्लू मौर्या के बेटी आशा के अलावा कोई संतान नहीं हुई। बचपन से ही वह नेत्रहीन है। गरीबी और उसकी नेत्रहीनता के कारण कल्लू बेटी के हाथ पीले करने के सपनों को भी पूरा नहीं कर सका, जबकि सरकारी योजना से गरीब परिवार के बच्चों की शादी भी होती है। हर साल सामूहिक विवाह होता है। वर्जन..

कल्लू मौर्या के परिवार को अगर किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है तो इसकी पड़ताल के लिए मौके पर अधिकारियों को भेजा जाएगा। जरूरतमंद परिवार को सरकारी योजना के लाभ के साथ हर संभव मदद की जाएगी।

-अमित कुमार सिंह, जिलाधिकारी


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