अशिक्षितों को साक्षर बना समाज के लिए प्रेरणा बनीं सुचित्रा
शिक्षा को जितना बांटा जाएगा वह उतना ही बढ़ेगा। पढ़ाई के समय अपनी शिक्षिका वीरबाला वर्मा से मिली प्रेरणा को सार्थक बनाने में विकास खंड सिराथू के सिधिया आमद करारी गांव की सुचित्रा विश्वकर्मा जुटी हैं। वह अपने घर पर ही अशिक्षित व वंचित लोगों को पढ़ा रही हैं।
वीरेंद्र केसरवानी, टेढ़ीमोड : शिक्षा को जितना बांटा जाएगा वह उतना ही बढ़ेगा। पढ़ाई के समय अपनी शिक्षिका वीरबाला वर्मा से मिली प्रेरणा को सार्थक बनाने में विकास खंड सिराथू के सिधिया आमद करारी गांव की सुचित्रा विश्वकर्मा जुटी हैं। वह अपने घर पर ही अशिक्षित व वंचित लोगों को पढ़ा रही हैं। जिनके पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए धन नहीं है उनके लिए वह एक सहारा बन कर खड़ी हैं।
सुचित्रा विश्वकर्मा पेशे से शिक्षा मित्र हैं। विवाह के पहले उन्होंने वाराणसी के एक प्राइवेट विद्यालय में पढ़ाना शुरू किया। वर्ष 2000 में विवाह के बाद वह कौशांबी आ गई। उन्होंने यहां कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में पढ़ना शुरू किया। वर्ष 2002 में गांव के ही विद्यालय में इनका चयन शिक्षामित्र के रूप में हो गया। इस विद्यालय में उन्हें ऐसे बच्चों के नजदीक जाने का मौका मिला जो उपेक्षित थे। स्कूल में भी उन्हें सही तरीके से शिक्षा नहीं मिल रही थी। ऐसे में वे स्कूल के अलावा शाम को घर पर पास-पड़ोस के बच्चों व निरक्षरों को बुलाकर पढ़ाने लगीं। बच्चों के ऐसे अभिभावकों को भी साक्षर बनाया जो अपना नाम नहीं लिख पाते थे।
सिधिया आमद करारी गांव की आशा देवी व सरोज देवी ने बताया कि वह पढ़ी-लिखी नही थी। अपना नाम लिखना तक नहीं आता था। बैंक, कोटेदार व अन्य जगहों पर नाम लिखने को कहने पर अंगूठा लगाती थी। इसकी वजह से शर्म महसूस होती थी। अब वह साक्षर हो गई हैं। कहीं पर भी बिना झिझक के अपना हस्ताक्षर करती हैं। वह इसका श्रेय सुचित्रा को देती है। सुचित्रा शिक्षा के प्रति समाज में लोगों को आगे बढ़ाने का निरंतर प्रयास कर रही हैं। जिलाधिकारी एवं उपजिलाधिकारी ने उन्हें स्कूल में शिक्षा व शिक्षा से जुड़े विभिन्न आयामों के लिए जिला व तहसील स्तर पर प्रशस्ति पत्र दिया है।