स्कूल ड्रेस का टेंडर लेकर फंस गई स्वयं सहायता समूह की महिलाएं
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन योजना से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को रोजगार देने की पहल की गई। इसके लिए बकायदा समूह बनाया गया और उनको विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण देकर रोजगार मुहैया कराया गया लेकिन सरकारी विभाग की पहल से मूरतगंज गांव के एक ब्लाक की महिलाएं परेशान हैं। उनको रोजगार मिला मन लगाकर पूरी लगन से उन्होंने काम भी किया। इसके लिए जरूरत के अनुसार उन्होंने बैंक से ऋण भी लिया लेकिन अब यह महिलाएं खुद को ठगा महसूस कर रही है।
संसू, मूरतगंज : राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन योजना से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को रोजगार देने की पहल की गई। इसके लिए बकायदा समूह बनाया गया और उनको विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण देकर रोजगार मुहैया कराया गया, लेकिन सरकारी विभाग की पहल से मूरतगंज गांव के एक ब्लाक की महिलाएं परेशान हैं। उनको रोजगार मिला, मन लगाकर पूरी लगन से उन्होंने काम भी किया। इसके लिए जरूरत के अनुसार उन्होंने बैंक से ऋण भी लिया, लेकिन अब यह महिलाएं खुद को ठगा महसूस कर रही है। करीब तीन साल बीत जाने के बाद भी बेसिक शिक्षा विभाग ने अब तक उनका भुगतान नहीं किया। साथ ही बैंक के ऋण को वह दबाव में दूसरे से कर्ज लेकर चुका रही हैं। शिक्षा विभाग बजट न होने का रोना रो रहा है। ऐसे में समूह से जुड़ी महिलाएं परेशान हैं। वह बार-बार अधिकारियों को पत्र देकर भुगतान कराए जाने की मांग कर रही हैं।
मूरतगंज ब्लाक के पट्टी परवेजाबाद की महिलाओं ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन योजना से ख्वाजा गरीब नवाज समूह का गठन किया। इन महिलाओं ने समूह के माध्यम से गांव में कपड़ा सिलने का काम शुरू किया। इस पर अधिकारियों ने मंथन कर समूह को और अधिक सक्षम बनाने के लिए प्रयास किया और उनको परिषदीय स्कूल के छात्रों के कपड़े सिलने का कम दे दिया। महिलाओं को यह काम मिला तो उनको लगा कि अब उनके अच्छे दिन आने वाले हैं। महिलाओं ने स्थानीय लोगों के साथ ही बैंक से ऋण लेकर काम शुरू कर दिया। वर्ष 2018-19 में उन्होंने पूर्व माध्यमिक विद्यालय समसपुर, जलालपुर, बीरनपर, पट्टी परवेजाबाद व पंसौर के लिए 96400 रुपये और 2019-20 में पूर्व माध्यमिक विद्यालय जलालपुर, बीरनपर, पट्टी परवेजाबाद, गौहानी स्कूल के विद्यार्थियों के लिए 91500 रुपये के कपड़े सिले। दो सालों में महिलाओं ने एक लाख 87 हजार 900 रुपये का काम किया, लेकिन अब तक उनको स्कूलों से भुगतान नहीं मिला। ऐसे में उन्होंने जिन लोगों और बैंक से रुपये लेकर काम शुरू किया था। अब वह उनसे रुपये मांग रहे हैं। ऐसे में उनको दूसरों से कर्ज लेकर कर्ज लिए रुपये वापस करना पड़ रहा है। महिलाओं ने विभाग से रुपये दिलाने के लिए ब्लाक से लेकर मुख्य विकास अधिकारी तक फरियाद लगाई, लेकिन अब तक उनको भुगतान नहीं किया जा सका। इसके लिए विभाग बजट न होने का रोना रो रहा है। समूह में शामिल अध्यक्ष तवस्सुम व कोषाध्यक्ष शमसीदा आदि ने बताया कि स्कूलों के ड्रेस बनाने के चक्कर में उनका रोज के कपड़े सिलने का काम भी प्रभावित रहा और अब उनका भुगतान भी नहीं किया जा रहा है।
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इतनी बड़ी धनराशि बाकी हो यह संभव नहीं लगता, दो सालों से शेष बचा 25 फीसद धनराशि का भुगतान नहीं हुआ है। शासन से बजट न आने के कारण यह प्रभावित है। समूह का भुगतान अब तक क्यों नहीं हुआ। पूरे प्रकरण की जांच कराई जाएगी। रिपोर्ट के आधार पर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
- राजकुमार पंडित, बीएसए कौशांबी