दुर्गा प्रतिमा की बिक्री न होने से मूर्तिकार उदास
कोरोना काल में जहां सारे कामकाज प्रभावित होने लोगों को पैसों की किल्लत से जूझना पड़ा। तीन माह बाद अनलाकडॉउन में लोगों ने धीरे-धीरे कामकाज शुरू किया और अपनी खराब आर्थिक तंगी को सुधारने में जुट गए। वहीं मूर्ति कलाकारों ने भी हर साल की भांति हिदू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को संवारने में जुट गए। लेकिन पिछले साल की अपेक्षा मात्र 10 प्रतिशत ही प्रतिमाओं कि बुकिग होने से उनकी सारी मेहनत बेकार हो गई ।
कसेंदा : कोरोना काल में जहां सारे कामकाज प्रभावित होने लोगों को पैसों की किल्लत से जूझना पड़ा। तीन माह बाद अनलाकडॉउन में लोगों ने धीरे-धीरे कामकाज शुरू किया और अपनी खराब आर्थिक तंगी को सुधारने में जुट गए। वहीं मूर्ति कलाकारों ने भी हर साल की भांति हिदू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को संवारने में जुट गए। लेकिन पिछले साल की अपेक्षा मात्र 10 प्रतिशत ही प्रतिमाओं कि बुकिग होने से उनकी सारी मेहनत बेकार हो गई ।
मार्च माह से हुए लॉकडाउन के बाद तीन माह बाद ऑनलाक में मूर्ति कारों ने कारीगरों को मजदूरी पर रख कर मां दुर्गा, लक्ष्मी गणेश, आदि देवी देवताओं की प्रतिमाओं को आकार देने में जुट गए थे। इन दिनों प्रतिमाओं को रंगीन पेंट कपड़े चूनर आदि साजो सामान से मूल रूप देना ही बाकी है और अभी तक प्रतिमाओं की बुकिग नहीं हुई, मूर्ति कारों में उनकी मेहनत बेकार जाने की चिता बनी है। विकास खंड नेवादा बसुहार गांव निवासी मूर्ति कलाकार रामपाल सिंह ने बताया की अनलाकडॉउन के बाद उन्होंने 15 कारीगर लगाकर दो सौ से अधिक प्रतिमाएं तैयार कर ली है। रामपाल सिंह के मुताबिक पहले जहां महीने भर पहले से डेढ़ सौ से दो सौ तक प्रतिमा की बुकिग हो जाती थी। वहीं इस साल महज 20 प्रतिमा की बुकिग हुई है। जिसके चलते कारीगरों को भी बिना मजदूरी दिए घर भेज दिया गया। मूर्ति बेच कर उनकी मजबूरी चुकाने और अपनी दिन रात की गई मेहनत से कमाई की आस लगी है। अगर इस बार मूर्ति न बिकी तो मूर्ति कारों को काफी नुकसान झेलना पड़ेगा।