शहजादपुर में मुगलकाल से होती आ रही रामलीला
कौशांबी। मुगलकाल से शहजादपुर गांव में रामलीला होती है।
कौशांबी। मुगलकाल से शहजादपुर गांव में रामलीला होती है। आज भी यहां रामलीला पारंपरिक ढंग से होती है। यहां की रामलीला में गांव के कलाकार रामायण की चौपाई के माध्यम से रामलीला का मंचन करते हैं। मुनि वशिष्ठ यज्ञ को पूर्ण करने में सहयोग के लिए राजा दशरथ से राम व लक्ष्मण को मांग कर ले जाते हैं। तब यज्ञ में विघ्न डालने वाले राक्षसों का राम और लक्षण वध करते हैं। 21 सितंबर से मुकुट पूजन के साथ ही शहजादपुर की रामलीला शुरू हो चुकी है। इसके बाद मारीच सभा, फुलवारी लीला, धनुष यज्ञ लक्षमण और परशुराम संवाद, राम बारात, सीता हरण व हनुमान मिलाप, बाली सुग्रीव युद्ध, लंका दहन, राम रावण युद्ध, भरत मिलाप तथा राज तिलक तक रामलीला का मंचन होगा है।
यादों के झरोखे से
70 वर्षीय शंकर दत्त पांडेय बताते है कि शहजादपुर में रामलीला का मंचन मुगलकाल से चला आ रहा है। उनका कहना है कि रामनगर वाराणसी के कालीचरण पांडेय ने शहजादपुर गांव के बाहर गंगा नदी के किनारे आकर एक कुटिया बनाकर रहने लगे तथा ग्रामीणों को अपने आने का मकसद बताया। उसी के बाद से यहां पर रामलीला का मंचन शुरू हुआ। कालीचरण रामलीला में हनुमान का मंचन करते थे। इसी कारण जिस जगह उन्होंने अपनी कुटिया बनाया। उसका नाम हनुमान घाट पड़ गया। आज भी हनुमान घाट पर ही रामलीला का मंचन होता है। सिर्फ लंकादहन व राम व रावण युद्ध ही लंका मैदान पर होता है।
बातचीत
- शहजादपुर में होने वाली रामलीला में रामबरात में पहले से कुछ बदलाव आया है। अब आधुनिकता के हिसाब से बैंड बाजे के साथ नृत्य कर गांव भ्रमण करते हुए जनकपुरी पहुंचती है। जहां श्रीराम व सीता विवाह संपन्न होता है।
- संतलाल मौर्या, अध्यक्ष
- शहजादपुर में मुगलकाल से ही चली आ रही रामलीला की परंपरा हिन्दू धर्म की विरासत है। कभी कभार यहां कुछ समस्याएं भी आई। लेकिन आपसी सामंजस्य के कारण आज भी लोग बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते चले आ रहे है।
- रावेंद्र ¨सह उपाध्यक्ष
- पुरखों ने जिस प्रकार रामलीला मंचन का कार्य प्रारंभ किया गया था। आज भी उसी परंपरा के साथ पारांपरिक तरीके से रामलीला का कार्य चलता चला आ रहा है।
- दिनेश कुमार कोषाध्यक्ष