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राम वनवास का ²श्य देख नम हुई दर्शकों की आंखें

जिला मुख्यालय मंझनपुर के अंजहाई बाजार में चल रही रामलीला के मंचन में बुधवार को राम वन गमन व केवट संवाद का मंचन कलाकारों ने किया। राम वनवास का दूश्य देख दर्शकों की आंखें भर आई। उधर नेवादा के नूरपुर गांव की रामलीला में मिथिला नरेश की पुत्री का स्वयंबर हुआ। दर्शक दोनों जगह रामलीला देखकर विभोर हो गए।

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 11:47 PM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 11:47 PM (IST)
राम वनवास का ²श्य देख नम हुई दर्शकों की आंखें
राम वनवास का ²श्य देख नम हुई दर्शकों की आंखें

कौशांबी : जिला मुख्यालय मंझनपुर के अंजहाई बाजार में चल रही रामलीला के मंचन में बुधवार को राम वन गमन व केवट संवाद का मंचन कलाकारों ने किया। राम वनवास का दूश्य देख दर्शकों की आंखें भर आई। उधर, नेवादा के नूरपुर गांव की रामलीला में मिथिला नरेश की पुत्री का स्वयंबर हुआ। दर्शक दोनों जगह रामलीला देखकर विभोर हो गए।

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मंझनपुर की रामलीला में महाराज दशरथ ने राम को युवराज बनाने की घोषणा कर दी, जिसके बाद नगर में तैयारियां होने लगी। प्रजा जन हर्षोल्लास से तैयारियां करने लगी। तभी महरानी कैकेयी ने महाराज दशरथ से दो वचन मांग लिए। पहले वचन में उन्होंने अपने बेटे भरत को राज और दूसरे वचन में राम को 14 साल का बनवास मांगा। दशरथ राजधर्म में फंस गए। राम ने पिता के वचन का मन रखा और अयोध्या से वन को चूक कर गए। राम के साथ सीता और लक्ष्मण ने भी अयोध्या नगरी को छोड़ दिया। गंगा तट पर नदी पार करने के लिए उन्होंने केवट की मदद मांगी, केवट ने कहा कि मैं तभी आपको नदी पार करुऊंगा, जब मैं आपके पैर धो लूंगा, नहीं तो मेरी नाव भी नारी बन जाएगी। देर तक केवट राम का संवाद चलता रहा, जिसका आंनद दर्शकों ने लिया। अंतत: केवट ने भगवान श्रीराम के पैर पखारे और राम, लक्ष्मण, सीता को गंगा पार कराया। कलाकारों की शानदार प्रस्तुत देखकर दर्शक भावविभोर गए गए। रामलीला का मंचन समाप्त होने पर लोगों ने खड़े होकर जयकार लगाया।

उधर, विकास खंड नेवादा के नूरपुर गांव में आयोजित रामलीला में सीता स्वयंबर हुआ। रामलीला में मिथिला नरेश जनक ने विवाह के लिए स्वयंबर का आयोजन किया। महराज जनक ने प्रण किया था की भगवान शंकर के अजगव यानि धनुष को जो उठाएगा उसी के साथ जानकी का विवाह किया जाएगा। इसके लिए स्वयंबर का आयोजन किया गया। देश भर के राजाओं को इसके लिए न्योता भेजा गया। कोई भी राजा धनुष को तनिक हिला तक नहीं सका। सभी राजाओं ने एक साथ मिलकर धनुष उठाने का प्रयास किया, परंतु उठाना तो दूर हिला तक नहीं सके। यह सब देखकर जनक बहुत निराश हुए और कहा कि अब मेरी बेटी कुंवारी ही रह जाएगी। तब लक्ष्मण क्रोधित होकर बोले उसके बाद भगवान राम ने लक्ष्मण को समझाया। तब विश्वामित्र ने राम से कहा कि उठहु राम भंजहू भव चापू-इतने में राम ने धनुष को जैसे ही उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाना चाहा धनुष टूट गया, तब सीता ने भगवान राम के गले में जयमाला डाल दी और सीता राम का विवाह संपन्न हुआ।


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