मूरतगंज ब्लाक के आलमचंद में नहीं जला विकास का दीया
मूरतगंज ब्लाक के आलमचंद गांव की आबादी करीब 3800 है। गांव में 40-45 घर हैं। इनकी बस्ती अलग है। सरकारी आंकड़ों की मानें तो यहां पर विकास की गंगा बह रही है लेकिन हकीकत उससे इतर है। बस्ती में न तो लोगों के पास पीने के लिए पानी है और न ही शौचालय व आवास की सुविधा उनको मिली है।
संसू, महगांव : मूरतगंज ब्लाक के आलमचंद गांव की आबादी करीब 3800 है। गांव में 40-45 घर हैं। इनकी बस्ती अलग है। सरकारी आंकड़ों की मानें तो यहां पर विकास की गंगा बह रही है, लेकिन हकीकत उससे इतर है। बस्ती में न तो लोगों के पास पीने के लिए पानी है और न ही शौचालय व आवास की सुविधा उनको मिली है।
ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को बेहतर सुविधा मिले। इसके लिए सरकार की ओर से विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। पीने के लिए स्वच्छ पानी, रोजगार के लिए ऋण, शौचालय व आवास की सुविधा आदि इन योजनाओं में प्रमुख हैं, लेकिन आलमचंद की बस्ती इन योजनाओं से अछूती है। यहां पर न तो लोगों के पास पक्के घर हैं और न ही पेयजल सुविधा। तमाम परिवार ऐसे हैं जिनके लिए पक्की छत सपना बना है। सरकार की ओर से मुफ्त शौचालय वितरित किए जा रहे हैं। यह भी यहां की बस्ती में रहने वालों के नसीब में नहीं आ सका। गांव के भोला, नन्हें, गोरेलाल, सूरजपाल, पांच बाबू आदि ने बताया कि उनके पास सिर छिपाने की पक्की छत नहीं है। इसके लिए उन्होंने कई बार सचिव व प्रधान से कहा, लेकिन उन्हें केवल आश्वासन मिला है। गांव की प्रधान तो ननकी देवी हैं लेकिन अधिकांश विकास कार्यों का संचालन उनके पति रामनरेश यादव की देखरेख में होता है। उन्होंने बताया कि गांव में 335 शौचालय आए थे, जिसमें 315 बन चुके हैं। अन्य का निर्माण हो रहा है। इस सूची में बस्ती के लोगों के नाम भी शामिल है, लेकिन गांव के लोग प्रधानपति की बातों को सिरे से इन्कार कर रहे हैं। गांव में गंदगी का अंबार
दलित बस्ती में रहने वालों लोगों को घर तक पहुंचने के लिए सड़क तक नहीं है। बस्ती के अंदर आज भी रास्ते कच्चे हैं। इन पर खड़ंजा लगा ही नहीं। बारिश के दिनों में स्थिति और भी खराब हो जाती है। सफाई कर्मी का आना बस्ती के लोगों के लिए किसी जश्न से कम नहीं होता। करीब छह माह से गांव में कोई सफाई नहीं पहुंचा। नतीजतन यहां गंदगी का अंबार लगा है। पानी के लिए यहां कई हैंडपंप लगे हैं, लेकिन यह पानी नहीं देते। लोग पानी के लिए परेशान रहते हैं। बिजली के तार जगह-जगह से टूटे हैं, जिनसे किसी दिन भी हादसा हो सकता है। बोले ग्रामीण
- आजादी के बाद से बस्ती में विकास कार्य नहीं हुआ। अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि हमारे घरों के सामने खड़ंजा तक नहीं लगा।
- जयकली। गांव में सफाई का अभाव है, जिससे आए दिन लोग बीमार रहते हैं। कई मर्तबा प्रधान से शिकायत की गई, लेकिन कोई भी सुनने को तैयार नहीं है।
- मोहिबुन निशा। - बेटा सबील पूरी तरह से विकलांग है लेकिन कोई सरकारी अनुदान या सहायता नही मिली। हर कर्मचारी व अधिकारी से फरियाद की गई।
- राजेंद्र कुमार। - गांव के लोग पूरे दिन पानी के लिए परेशान रहते हैं। कुएं सूख चुके हैं, हैंडपंप जरूरत के अनुसार लगे नहीं, ऐसे में परेशानी बनी रहती है।
- राम खेलावन।