श्वेत क्रांति से घर-घर 'उजियारा', सुधर रही 'सेहत'
दूध एक ऐसा भोज्य पदार्थ है जो तंदरुस्त सेहत के लिए विभिन्न पकवानों में इस्तेमाल किया जाता है। आज सुबह की चाय से लेकर दही घी और पनीर के अलावा मिष्ठान के सभी उत्पादों में इसका प्रयोग किया जाता है। 1970 के दशक में दूध की कमी को पूरा करने के डॉ. वर्गीज कुरियन ने गुजरात के आनंद में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इनके सराहनीय कार्यों के लिए इन्हें श्वेत क्रांति का जनक भी कहा जाता है। भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया है। पहली बार इनके जयंती पर 26 नवंबर 2014 को 22 राज्यों की सहभागिता से मेघालय में राष्ट्रीय दूध दिवस मनाया गया था।
चायल : दूध एक ऐसा भोज्य पदार्थ है, जो तंदरुस्त सेहत के लिए विभिन्न पकवानों में इस्तेमाल किया जाता है। आज सुबह की चाय से लेकर दही, घी और पनीर के अलावा मिष्ठान के सभी उत्पादों में इसका प्रयोग किया जाता है। 1970 के दशक में दूध की कमी को पूरा करने के डॉ. वर्गीज कुरियन ने गुजरात के आनंद में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इनके सराहनीय कार्यों के लिए इन्हें श्वेत क्रांति का जनक भी कहा जाता है। भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया है। पहली बार इनके जयंती पर 26 नवंबर 2014 को 22 राज्यों की सहभागिता से मेघालय में राष्ट्रीय दूध दिवस मनाया गया था। ग्राम्य विकास विभाग दूध की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए गरीब कल्याण योजना के तहत विधवा, दिव्यांग, अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति समेत पात्र किसानों और पशुपालकों का निजी कैटेलशेड का निर्माण करवा रहा है। कौशांबी में खेती से जुड़ी महिलाएं और पुरुष निजी भूमि पर कैटेलशेड निर्माण करवाकर मवेशियों से दूध का उत्पादन कर अपनी आय में वृद्धि कर आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हैं। निजी कैटेलशेड निर्माण से बढ़ रही दूध की उत्पादन क्षमता
ग्राम्य विकास विभाग गरीब कल्याण योजना के तहत दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए पात्र लाभार्थियों का निजी कैटेलशेड का निर्माण करवा रहा है। मनरेगा योजना से दो मवेशियों के लिए 80 हजार रुपये व चार मवेशियों के लिए एक लाख 60 रुपये कैटेलशेड पर भुगतान किया जा रहा है। इससे जनपद के पशुपालक दूध का उत्पादन कर आत्मनिर्भर बन रहे हैं।
कौशांबी की कुल आबादी लगभग 16 लाख है। जनपद के 92 प्रतिशत लोग कृषि व पशुपालन पर निर्भर हैं। नोडल अधिकारी डॉ. यशपाल सिंह पशुपालन विभाग के आकड़ों की मानें तो जनपद में करीब 5,40,898 मवेशी हैं। इनमें 30 फीसद यानि 1,58,124 दुधारू मवेशी हैं। इनसे कुल दूध का उत्पादन चार लाख लीटर हो रहा है। पशुपालक डेढ़ लाख लीटर तो स्वयं खाने पीने में इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं ढाई लाख लीटर दूध प्राइवेट डेयरियों के साथ होटल और घरों में आपूर्ति कर रहे हैं। ग्राम्य विकास विभाग दूध के उत्पादन को बढ़ाने के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के पात्र लाभार्थियों व विधवा महिला, दिव्यांगजनों को मनरेगा के तहत पशुपालन के लिए चरही, फर्श और यूरिनल ट्रैक निर्माण पर करीब तीन सौ कैटेलशेड का निर्माण करवा चुका है और इतने ही कैटेलशेड किसानों के निजी भूमि पर निर्माणाधीन हैं। सेवढ़ा गांव की अनीता देवी पत्नी समर सिंह व अमवां गांव की मीना देवी पत्नी ओम प्रकाश ने बताया कि बैंक से ऋण मिलने के बाद दुधारू मवेशी तो खरीद लिए थे, लेकिन गोशाला निर्माण के लिए पैसे नही थे। ब्लाक से कैटेलशेड का निर्माण करवाया जा रहा है। दूध से अच्छी आमदनी हो रही है। इस संबंध में जानकारी देते हुए मनरेगा परियोजना निदेशक लक्ष्मण प्रसाद ने बताया कि पात्र लाभार्थियों के भौतिक सत्यापन के बाद ही मनरेगा अपने देखरेख में निर्माण करवाकर पशुपालक को कैटेलशेड हस्तांतरित कर रहा है। एक व्यक्ति को महज 10 ग्राम मिल रहा है दूध
जनपद की कुल जनसंख्या 16 लाख है। जबकि मवेशियों से दूध का उत्पादन महज चार लाख लीटर ही हो रहा है। इसमें भी करीब 20 हजार लीटर नांदुल डेयरी, पांच हजार लीटर अन्नपूर्णा डेयरी, 1500 लीटर पराग डेयरी, 25 हजार लीटर श्याम डेयरी, मदर डेयरी, मंगलम डेयरी, नमस्ते इंडिया डेयरी समेत करीब दो दर्जन डेयरियां ढाई लाख लीटर दूध का कलेक्शन कर बाहर के जनपदों में आपूर्ति कर रही हैं। जिले की जनसंख्या के लिहाज से महज डेढ़ लाख लीटर दूध ही जनपद के लोगों को मिल पा रहा है, जो एक व्यक्ति पर 10 ग्राम ही दूध आ रहा है। ब्लाकवार कैटेलशेड लाभार्थियों की संख्या
चायल 30
नेवादा 51
मूरतगंज 35
कौशांबी 65
मंझनपुर 51
कड़ा 04
सिराथू 41 आंकड़े
-16 लाख आबादी है दोआबा की
-92 प्रतिशत लोग कृषि व पशुपालन पर निर्भर
-5,40,898 मवेशी है जनपद में
-1,58,124 मवेशी हैं दुधारू
-4,00,000 लीटर दूध का हो रहा उत्पादन
-1,50,000 लीटर दूध का इस्तेमाल होता है खाने-पीने में
-2,50,000 लीटर दूध की प्राइवेट डेयरियों के साथ होटल और घरों में होती है आपूर्ति पशुपालक बोले..
मवेशियों से मिलने वाले दूध से अच्छा फायदा मिल रहा है। यूं तो खेती ही सहारा थी, लेकिन जब से डेयरी में दूध की सप्लाई शुरू की है, सारे खर्च निकालने के बाद हर माह छह हजार रुपये बच जाते हैं।
-लोकनाथ सिंह, जवाहरगंज नेवादा डेयरी में दूध भेजवाने से अच्छा फायदा होता है। समस्या इस बात की है कि गांव तक डेयरी की गाड़ी नहीं आती, ऐसे में खुद ही दूध डेयरी तक पहुंचाना पड़ता है। दुग्ध उत्पादन बढ़ने से लाभ मिला है।
-जयसिंह, उमरवल गांव तक डेयरी की गाड़ी न आने से दूध को दूधिए के हाथ बेचना पड़ता है। ऐसे में उन्हें महज तीन से चार रुपये का ही फायदा होता है। जबकि दूध डेयरी पर बेचने से पांच से आठ रुपये प्रति लीटर मिल जाते हैं।
-इंद्रसेन, उमरवल