उपभोक्ताओं की घटी संख्या, बंद होने के कगार पर 14 टेलीफोन एक्सचेंज
किसी जमाने में घरों की शोभा समझे जाने वाले लैंडलाइन फोन अब आधुनिकता की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। बढ़ते मोबाइल युग में लैंडलाइन की संख्या लगातार कम होती जा रही है। आलम यह है कि छोटे से जिले कौशांबी के कुछ कस्बों में तो फोन देखने को ही नहीं मिलेगा। कुछ लोग अब बातों के लिए नहीं ब्रांडबैंड के लिए ही इस फोन का प्रयोग करते हैं।
महगांव : किसी जमाने में घरों की शोभा समझे जाने वाले लैंडलाइन फोन अब आधुनिकता की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। बढ़ते मोबाइल युग में लैंडलाइन की संख्या लगातार कम होती जा रही है। आलम यह है कि छोटे से जिले कौशांबी के कुछ कस्बों में तो फोन देखने को ही नहीं मिलेगा। कुछ लोग अब बातों के लिए नहीं ब्रांडबैंड के लिए ही इस फोन का प्रयोग करते हैं।
करीब दो दशक पहले लैंडलाइन फोन घरों की शान समझे जाते थे। इसकी घंटी बजी नहीं कि घर के बुजुर्ग से लेकर बच्चे तक फोन की ओर भागते थे। ग्रामीण क्षेत्र में कुछ लोगों के घर पर ही फोन हैं। ऐसे में यदि कोई बाहर से फोन करता तो उनको बुलाने के लिए पूरा गांव जुट जाता था। आलम यह था कि एक फोन पूरे गांव में हलचल ला देता था, लेकिन तकनीकी के साथ अब यह फोन गुजरे जमाने की बात होती जा रही है। मोबाइल फोन के आने से लैंडलाइन फोन की संख्या घटती जा रही है। जो लोग लैंडलाइन का कनेक्शन ले रखा है वह भी केवल ब्राडबैंड चलाने में ही इसका प्रयोग करते हैं। बीएसएनएल के एसडीओ राजकुमार मौर्या का कहना है। लैंडलाइन फोन के उपभोक्ताओं की संख्या काफी कम हो गई है, जिसकी वजह से जनपद के 14 टेलीफोन एक्सचेंज बंद होने की कगार पर हैं। पिछले एक दशक से कर्मचारियों की तैनाती नहीं की गई है। उपभोक्ताओं की संख्या कम होने से विभाग को नुकसान भी हो रहा है।