कोरोना ने फिर किया बेरोजगार, घर लौटे परदेशी
अर्का कोरोना संक्रमण के चलते पिछले वर्ष 22 मार्च को लाकडाउन लगा था। इसकी वजह से हजारों
अर्का : कोरोना संक्रमण के चलते पिछले वर्ष 22 मार्च को लाकडाउन लगा था। इसकी वजह से हजारों लोग शहर से घर आ गए थे। घर परिवार चलाने के लिए परदेशियों ने रोजगार की तलाश किया। जिले में उन्हें रोजगार नहीं मिला और कामगार के स्वजनों को खाने के लाले पड़ने लगे तब वह हिम्मत जुटा कर दिल्ली व मुंबई गए। एक साल बाद आई कोरोना की दूसरी लहर ने उन्हें फिर गांव भेज दिया है। घर आकर वह सुरक्षित तो महसूस कर रहे हैं, लेकिन स्वजनों का पेट भरने की चिता सता रही है।
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर काफी घातक है। लगातार मरीजों की संख्या बढ़ रही है। दिल्ली, मुबंई समेत कई शहरों में फैक्ट्री बंद कर दी गई। काम धंधा बंद होने की वजह शहरों में रह रहे परदेशी फिर वापस आ गए हैं। मंझनपुर तहसील क्षेत्र के म्योहर के राजेश जायसवाल, रवि, बीरेंद्र, हनुमान शंकर, मनीष त्रिपाठी, सचवारा के मलखान आदि का कहना है कि कोरोना की वजह 22 मार्च 2020 को लाकडाउन लगा था। शहरों में काम धंधा बंद हो गया है। लाकडाउन की वजह से गांव वापस लौटने के लिए साधन नहीं मिल रहे थे। काफी परेशानी झेलने के बाद गांव पहुंचे तो स्कूल में 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन कर दिया गया था। पिछले वर्ष हुए लाकडाउन के दौरान हुई परेशानियों को देख शहर न जाकर जनपद में ही काम करने का फैसला लिया है। काफी तलाश के बाद जनपद के काम नहीं मिला तो सारे दुख दर्द भुला कर मुंबई चले गए। लाकडाउन लगने की वजह से पुन: वापस आ गए है। सचवारा के लवकुश ने बताया कि बहन की शादी के लिए साहूकार से कर्ज लिया था। शहर में सिलाई का कार्य कर रहे थे। लाकडाउन लगने की वजह से वापस लौट आए गए हैं।
- कर्ज कैसे होगा वापस
शिवकरण विश्वकर्मा का कहना है कि तीन माह पहले दिल्ली गया था। वहां पर पांच हजार का ठेला व आठ हजार की जूस मशीन खरीदकर कारोबार शुरू किया था। कोरोना के कारण 13 हजार रुपये का सामान मात्र 3700 में बेच कर घर आ गया हूं। यहां पर काम धंधा नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में स्वजनों का पेट पालना मुश्किल हो रहा है।