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जवानी में ही घरवालों के बाद हड्डियों ने छोड़ा साथ, कूल्हे की हड्डियों को बदलने के लिए नहीं है धन

सरकार के स्वास्थ भारत का सपना गोल्डेन कार्ड पूरा कर सकता है। इससे पांच लाख तक का उपचार निश्शुल्क कराए जाने का प्रावधान है लेकिन जिले के जरूरतमंदों के पास तक यह सुविधा नहीं पहुंच रही। स्थानीय स्तर पर हो रही कमियों का खामियाजा लाभार्थी भुगत रहे हैं। कसेंदा निवासी रमेश कुमार साहू की हड्डियों ने उनका साथ छोड़ना शुरू कर दिया है। इसका परिणाम रहा कि वह जवानी में ही बुजुर्ग दिखने लगे हैं। गोल्डेन कार्ड के लिए रमेश पात्र ही नहीं है। इसके कारण उनको इस सुविधा का लाभ नहीं मिला। अब वह हर किसी की ओर मदद भरी आस से निहार रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 28 Nov 2021 08:30 PM (IST)Updated: Sun, 28 Nov 2021 08:30 PM (IST)
जवानी में ही घरवालों के बाद हड्डियों ने छोड़ा साथ, कूल्हे की हड्डियों को बदलने के लिए नहीं है धन
जवानी में ही घरवालों के बाद हड्डियों ने छोड़ा साथ, कूल्हे की हड्डियों को बदलने के लिए नहीं है धन

कौशांबी। सरकार के स्वास्थ भारत का सपना गोल्डेन कार्ड पूरा कर सकता है। इससे पांच लाख तक का उपचार निश्शुल्क कराए जाने का प्रावधान है लेकिन जिले के जरूरतमंदों के पास तक यह सुविधा नहीं पहुंच रही। स्थानीय स्तर पर हो रही कमियों का खामियाजा लाभार्थी भुगत रहे हैं। कसेंदा निवासी रमेश कुमार साहू की हड्डियों ने उनका साथ छोड़ना शुरू कर दिया है। इसका परिणाम रहा कि वह जवानी में ही बुजुर्ग दिखने लगे हैं। गोल्डेन कार्ड के लिए रमेश पात्र ही नहीं है। इसके कारण उनको इस सुविधा का लाभ नहीं मिला। अब वह हर किसी की ओर मदद भरी आस से निहार रहे हैं।

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ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरतमंद को गोल्डेन कार्ड दिलाने के लिए सर्वे की जिम्मेदारी आशाओं को मिली थी। कसेंदा गांव में रमेश को सर्वे के दौरान छोड़ दिया गया। इसका दंश वह अब झेल रहा है। चायल पीएचसी क्षेत्र के कसेंदा निवासी रमेश कुमार साहू पुत्र धनी साहू अपने जवानी के दिन देखने के पहले ही बूढ़ा हो गया है। वह एवैस्कुलर नेक्रोसिस बीमारी से ग्रस्त हो गया है। इससे उसके कूल्हे की हड्डी खराब हो गई है। डाक्टरों ने उसे कूल्हे की हड्डी बदलने की सलाह दी है। इसके लिए सर्जरी में तीन लाख रुपये की लागत आने की बात डाक्टरों ने बताई है। रमेश कुमार के मुताबिक उसके पिता उसका साथ छोड़ कर प्रयागराज में रहते हैं। भाई राकेश भी अपने बीवी बच्चों संग उससे दूर रहता है। माता अनारकली की दो साल पहले हुई मौत हो चुकी है। वह अकेला ही रहता है। एक साल से लाठी के सहारे खिसक कर किसी तरह मोहल्ले के लोगों से मिले निवाले से जीवन बिता रहा है। अपनी इस बीमारी का इलाज कराने के लिए अधिकारियों समेत प्रतिनिधियों से गुहार लगाई लेकिन किसी ने उसकी सुधि नहीं लिया। गोल्डेन कार्ड बनवाने के लिए भी दफ्तरों के चक्कर काटे लेकिन सफलता नहीं मिली। अब वह अपने युवा अवस्था का जीवन देखने के पहले ही मृत्यु की घड़ियां गिन रहा है। हर आने वाले की ओर वह आस भरी नजरों से देखता है।


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