.. और कैद में नहीं रह सका हुनर
विकास मालवीय कौशांबी कहते हैं बुलंद हौसले के बीच उड़ान का सफर आसान होता है। ऐसा
विकास मालवीय, कौशांबी : कहते हैं बुलंद हौसले के बीच उड़ान का सफर आसान होता है। ऐसा ही जज्बा जिला कारागार की चहारदीवारी के पीछे बंदियों व कैदियों में भी देखने को मिल रहा है। उनका हुनर अनोखी पहल के रूप में अक्सर सुर्खियों में रहता है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री के मन की बात में कारागार के जिक्र आखिरकार बंदियों व जेल प्रशासन के हौसले में फिर से उड़ान भर दी है। यहां तक पहुंचने के लिए बंदियों को कई पड़ाव से गुजरना पड़ा।
जेल आखिर जेल ही होती है। यहां बंदियों व कैदियों को सुधार के लिए रखा जाता है। देश में तमाम जेल हैं, लेकिन जिला जेल के बंदियों में कुछ अलग करने का जज्बा था, जिसे चहारदीवारी नहीं रोक सकी। उनका हुनर आज पूरे देश के लिए नजीर बना हुआ है। सफर शुरू हुआ दिसंबर 2018 में। जब जनपद की नई जेल में 25 बंदियों को प्रयागराज से लाकर शिफ्ट किया गया। धीरे-धीरे करके जेल में बंदियों की संख्या बढ़ती गई। वर्तमान समय में लगभग 800 बंदी व कैदी हैं। कभी जेल परिसर की मिट्टी बंजर हुआ करती थी। इस भूमि पर हरित क्रांति लाने के लिए जुलाई वर्ष 2017 में जेल अधीक्षक बीएस मुकुंद ने प्रयास शुरू किया। बंदियों व कैदियों की मदद से पूरी जमीन की खोदाई कराते हुए खाद व सिचाई के जरिए उपजाऊ बनाई और शाक-सब्जियों की खेती शुरू कराई। इतना ही नहीं, जेल परिसर में फुलवारी से लेकर छायादार वृक्ष भी मौजूद हैं। इसके बाद अधीक्षक ने वर्ष दिसंबर 2017 में देखा कि सुबह-शाम पंक्षी उड़ान भरते रहते हैं। उनकी चहचहाट से वातावरण काफी खुशनुमा हो जाता है। अधीक्षक बीएस मुकुंद ने पक्षियों के लिए बंदियों की मदद से प्लास्टिक के डिब्बे कटवाए और बैरक व चहारदीवारी के बाहर टंगवा दिए। स्थिति यह हो गई है कि हजारों की संख्या में पक्षी जेल परिसर में मंडराते रहते हैं और उन्होंने प्लास्टिक के डिब्बों पर घोसला भी बना लिया है। इसे बंदी सेवा भाव से जोड़ कर देखते हैं। इतना ही नहीं, इसके बाद आइटीआइ और कौशल विकास मिशन के तहत दर्जनों महिला व पुरुष बंदियों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए अचार, मुरब्बा, जेली-जैम समेत फिटर, मोटर व फैन बाइडिग आदि का प्रशिक्षण दिलाया, जिससे जेल के बाद बंदी अपराध की दुनिया के बजाए स्वरोजगार से जुड़ें। श्वेत क्रांति लाने के लिए गोशाला का निर्माण शुरू कराया गया, लेकिन किसी कारणवश प्रस्ताव पास नहीं कराया जा सका। हालांकि, जेल अधीक्षक ने बताया कि प्रयास जारी है।
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जेल में किया जा रहा जल संरक्षण
जेल अधीक्षक बीएस मुकुंद ने बताया कि बारिश के अलावा कारागार की नालियों में बहने वाला पानी बेवजह इधर-उधर फैलता रहता था। इसे देखते ही माह भर पहले कच्चा तालाब भी बनवाया गया है। उसमें जेल परिसर का पानी बहकर जाता है। इससे जल का संरक्षण भी हो रहा है। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी बताया कि जेल में पर्यावरण को खूबसूरत स्वरूप देने के उद्देश्य से एक पार्क का निर्माण कराया गया है। इसे फव्वारा व झरने से सुसज्जित भी किया जा रहा है।
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सब्जियों के लिए आत्मनिर्भर है जेल
जेल की बंजर भूमि को उपजाऊ बनाते हुए अब यहां क्यारियां बनाकर शाक-सब्जी उगाई जा रही है। जेल अधीक्षक का कहना है कि छह माह पहले तक बरेली, नैनी व फतेहपुर की जेल से सब्जियां मंगवानी पड़ती थीं। लेकिन, बंदियों व कैदियों की कड़ी मेहनत ने जेल परिसर की बंजर भूमि की खोदाई करते हुए खाद व पानी के जरिए इसे उपजाऊ बना दिया है। अब क्यारियां में बैगन, आलू, टमाटर, मूली, धनिया, पालक व सोया-मेथी आदि मौसमी सब्जियां उगाई जा रही हैं। इतना ही नहीं, सभी बैरिकों के सामने किचन गार्डेन बनाया गया है। यहां बनी क्यारियां की जिम्मेदारी बैरिक में रहने वाले बंदियों को सौंपी गई है।
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फिरोजाबाद की जेल भी लाई हरित क्रांति
जेल अधीक्षक बीएस मुकुंद का कहना है कि इससे पहले भी फिरोजाबाद जेल की बंजर भूमि को उन्होंने ऊपजाऊ बना दी थी। वहां तो सब्जियों का प्रयोग बंदियों के भोजन के लिए होता ही था। साथ ही बाजार में बेची भी जाती थी। इसी तरह मैनपुरी, जौनपुर व मथुरा में भी उन्होंने कई पहल की, जिससे बंदियों को बहुत कुछ सीखने को मिला। उन्होंने बताया कि उनके पिता लोकमन दास जूते-चप्पल का व्यापार आगरा में करते थे। अधीक्षक का निवासी आगरा के लोहा मंडी में है। बॉटनी से उन्होंने एमएससी कर रखी है।