लॉकडाउन ने सिखाई अभावों में जीने की राह
संवाद सहयोगी कासगंज 40 दिन से ज्यादा के लॉकडाउन ने लोगों को जीने की नई राह दिखाई है।
संवाद सहयोगी, कासगंज : 40 दिन से ज्यादा के लॉकडाउन ने लोगों को जीने की नई राह दिखाई है। पहले जिन चीजों के बगैर जिदगी अधूरी लगती थी, उन चीजों से दूरी बनाना भी लोगों ने सीख लिया है। रसोई में रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुएं हों या फिर बाहरी वस्तुएं। उनके बगैर जीना लोग सीख गए हैं।
युवा अशोक वाष्र्णेय पहले रोज सुबह का नाश्ता बाजार में ही करते थे। घर में नाश्ता करना अच्छा ही नहीं लगता था, लेकिन लॉकडाउन में घर के नाश्ते का स्वाद मुंह लग गया। वह कहते हैं अब तो बाहर खाने का मन भी नहीं करता है। भट्टा कारोबारी पंकज मालू कहते हैं पहले जहां गली के बाहर बाइक लेकर जाते थे, लॉकडाउन में दो किमी तक की दूरी बगैर बाइक के तय की। दूध कारोबारी अवधेश प्रताप कहते हैं ल़ॉकडाउन ने सीख दी है अगर नियमित एवं संयमित रहा जाए तो केवल दो जून की रोटी के अलावा विलासिता की हर वस्तु ही महत्वहीन है। विवेक कहते हैं पहले रोज शाम को दोस्तों के साथ फास्ट फूड बाजार में खाते थे, शुरुआती दिनों में तो दिक्कत हुई, लेकिन जिस तरह 40 दिन कटे, उससे समझ में आ गया कि फास्ट फूड कितना नुकसान कर रहे थे।
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'हमारे साथ बच्चों ने भी काफी कुछ सीखा है। चॉकलेट, पिज्जा एवं बर्गर पहले बच्चे रोज खाते थे, लेकिन इसे खाने की आदत छूट गई है। परिवार में पहले रोज शाम को खाने के बाद मिठाई खाने की परंपरा थी, लेकिन लॉकडाउन ने सिखा दिया कि इसके बिना भी काम चल सकता है। ज्यादा मन किया तो चीनी खा लेते थे।'
-कुमारिल गुप्ता
एलआइसी
'लॉकडाउन में टेलीविजन की महत्वता समझ में आई। सभी लग्जरी वस्तुएं महत्वहीन दिखाई दी। एसी के बगैर पहले नींद नहीं आती थी, लेकिन कोरोना के चलते घरों में एसी भी नहीं चलाए। कार और बाइक छोड़कर पैदल चलने की आदत डाल ली।'
-मुकेश शर्मा
प्रॉपर्टी डीलर