नहर नदियों की धार, करेगी बड़े आर्द्र क्षेत्रों का उद्धार
कासगंज संवाद सहयोगी जैव विविधता के क्षेत्र में जिले में नित नए प्रयास हो रहे हैं।
कासगंज, संवाद सहयोगी : जैव विविधता के क्षेत्र में जिले में नित नए प्रयास हो रहे हैं। अब जिला प्रशासन और वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की टीम ने संयुक्त रूप से जिले में जैव विविधता को बनाए रखने की नई संभावना तलाशी है। नहर नदियों की धार से आर्द्र क्षेत्रों को नया जीवन देने की पहल की गई है। इसके लिए प्रस्ताव भी तैयार कर लिए गए हैं। शनिवार को जिले में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की टीम ने झीलों पर पहुंचकर वहां जैव विविधता बनाए रखने की संभावना देखी।
पृथ्वी पर पेड़, पौधे, नदियां हों या फिर जीवजंतु। यह सभी जैव विविधता का अंग है। बात आर्द्र क्षेत्रों की करें तो संरक्षण के अभाव में अस्तित्वविहीन होते इन क्षेत्रों से जैव विविधता खतरे में है, लेकिन जिले में जैव विविधता बनाए रखने के लिए अब ठोस पहल हो रही है। दरियावगंज झील पहले ही लीडिग झील के रूप में चयनित हो चुकी है। अब राम छितौनी झील को नया जीवन देने की कोशिश की जा रही है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ) की टीम के अफसर दिल्ली से कासगंज पहुंचकर संभावना तलाशने में जुटे हैं। क्या है जैव विविधता
सभी पेड़-पौधों और जीवजंतुओं में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की प्रजातियों को जैव विविधता कहते हैं। इसके अंतर्गत सबसे छोटे बैक्टीरिया से लेकर बड़े पेड पौधों और जंतुओं तक की प्रजातियां शामिल रहती हैं। दरियावगंज झील
इस झील को दो वर्ष पहले लीडिग झील के रूप में चिह्नित किया गया, लेकिन संरक्षण के अभाव में यहां पर विदेश परिदे नहीं आए। इसको लेकर जिला प्रशासन चितित दिखा और फिर संरक्षण की मुहिम छेड़ी। इस झील का पानी सूख चुका था। संभावना तलाशते हुए गोरहा नहर से रास्ता बनाकर झील को जीवन दिया गया। अब यहां जीवजंतु और पेड़ पौधों का विकास हो रहा है। राम छितौनी झील
यह झील सहावर क्षेत्र में है। धीमे-धीमे यह संरक्षण के अभाव में अस्तित्वहीन होने लगी। जिला प्रशासन ने इसके संरक्षण को भी मुहिम छेड़ी है। पिछले दिनों राजस्व विभाग की टीम ने इस झील से अतिक्रमण हटवाया। अब डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की टीम इस झील की जैव विविधता को बनाए रखने के लिए आगे आई है। इस झील को गंगा नदी से जोड़कर नया जीवन देने की योजना बनाई जा रही है। जिले की जैव विविधता बनाए रखन के लिए नित नए प्रयास होने चाहिए। आर्द्र क्षेत्रों को जीवन मिलना चाहिए।
- आलोक दुबे, शिक्षक हम सबको गंभीरता दिखाकर जैव विविधता के क्षेत्र में काम करना चाहिए। झीलों का संरक्षण बेहद जरुरी है।
- जयंत गुप्ता, शिक्षक आंकड़े की नजर से
- 5950 हेक्टेयर में तीन दशक पहले थे आर्द्र क्षेत्र
- 517 हेक्टेयर में ही रह गए हैं आर्द्र क्षेत्र
- 300 से अधिक छोटे आर्द्र क्षेत्र सेटेलाइट से तलाशे गए
डीएम एवं सीडीओ का प्रयास है कि जिले में जैव विविधता को बनाए रखने के लिए बेहतर प्रयास किए जाएं। इसी कड़ी में दरियागंज झील को नहर से पानी दिया गया है। रामछिनौती झील को नदी से जीवन देने की संभावना तलाशने के लिए निरीक्षण किया है।
हिमांशु कुमार परियोजना अधिकारी डब्ल्यूडब्ल्यूएफ