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मां भारती की रक्षा को 18 हजार फीट की ऊंचाई पर दुश्मन को चटाई धूल

अंकित त्रिपाठी कानपुर देहात सामने से दुश्मन सेना लगातार गोलीबारी कर रही थी। 1

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 12:06 AM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 12:06 AM (IST)
मां भारती की रक्षा को 18 हजार फीट की ऊंचाई पर दुश्मन को चटाई धूल
मां भारती की रक्षा को 18 हजार फीट की ऊंचाई पर दुश्मन को चटाई धूल

अंकित त्रिपाठी, कानपुर देहात

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सामने से दुश्मन सेना लगातार गोलीबारी कर रही थी। 18 हजार फीट ऊंचाई के साथ ही माइनस में तापमान था। परिस्थितियां विपरीत होने के बाद भी दिल में मां भारती की रक्षा के लिए न्योछावर हो जाने का जुनून था और अपने साथियों के साथ अदम्य साहस के बूते तोलोलिग के साथ ही टाइगर हिल पर जीत का परचम फहराया। यह बातें कारगिल युद्ध लड़ चुके श्यामवीर यादव ने कहीं। 18 ग्रेनेडियर रेजीमेंट में उनकी तैनाती थी और पूरी बहादुरी से युद्ध लड़ा।

झींझक के खानपुर निवासी श्यामवीर यादव 18 ग्रेनेडियर रेजीमेंट में हवलदार थे और कारगिल युद्ध से पहले उनकी तैनाती द्रास सेक्टर में थी। वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध शुरू होने पर उन्हें लेफ्टिनेंट कर्नल आर विश्वनाथन की ओर से मोर्चा संभालने का आदेश मिला। उन्होंने बताया कि पाकिस्तानी सेना 18 हजार फीट ऊंची तोलोलिग की पहाड़ियों पर मौजूद थी। चारों ओर से गोलीबारी और ग्रेनेड की आवाजें ही सुनाई दे रही थीं। दुश्मन सेना को यह विश्वास ही नहीं था कि भारतीय फौज सामने से आक्रमण करेगी और वह बिल्कुल ही निश्चिंत थे। रात करीब 10:30 बजे भारतीय फौज ने तोलोलिग की पहाड़ियों पर दुश्मन सेना पर आक्रमण कर दिया। 18 ग्रेनेडियर की अहीर कंपनी के 10 जवान सबसे आगे थे, जिसमें वह भी शामिल थे। एमएमजी (मीडियम मशीन गन) से उन्होंने 335 राउंड फायरिग कर दी, जिससे पाकिस्तानी सैनिकों को सिर उठाने तक का अवसर नहीं मिला और इसके बाद ग्रेनेड से भी हमला किया। सामने से हुए हमले को लेकर दुश्मन सैनिक तैयार नहीं थे, जिससे उन्हें मुंह की खानी पड़ी और अधिकांश दुश्मन मारे गए। दो जून 1999 को तोलोलिग की पहाड़ी पर दुश्मन सेना को धूल चटाने के साथ ही विजय हासिल की। युद्ध में उनके साथी मैनपुरी जिले के मुनीश कुमार शहीद हो गए थे। उनके पार्थिव शरीर को घर पहुंचाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई, जिससे उन्हें वापस आना पड़ा। इसके बाद 15 जून को फिर पहुंच गए। जज्बा ऐसा था कि घर में मां बिट्टनश्री, पिता बादशाह सिंह व पत्नी के साथ ही संपूर्ण परिवार था, लेकिन परिवार के किसी भी सदस्य की तनिक भी याद नहीं आती थी। इसके बाद एक जुलाई को टाइगर हिल पर युद्ध करने के लिए भेज दिया गया। परिस्थितियां ऐसी विपरीत थीं कि दो-दो दिन खाने-पीने तक कुछ नहीं मिलता था। नीचे से खाना लेकर टुकड़ी भेजी जाती थी, लेकिन चारों ओर से गोलीबारी के कारण पहुंचने में दो से तीन दिन का समय बीत जाता था। पाकिस्तानी सेना टाइगरहिल के सभी प्रमुख रास्तों में घात लगाकर बैठी थी जबकि द्रास, कारगिल व लेह मार्ग पर लगातार गोलीबारी चल रही थी। हालात विपरीत होने के बाद भी चार जुलाई को कर्नल कुशाल चंद्र के नेतृत्व में 18 ग्रेनेडियर ने टाइगर हिल पर तिरंगा फहरा दिया। इसके बाद 12 अगस्त तक उन्हें वहीं तैनात रहने के आदेश दिए गए थे। अनुमति मिलने पर जब घर पहुंचे तो जगह-जगह लोगों ने फूल-माला पहनाकर स्वागत किया। उन्हें गर्व होता है कि उन्होंने देश की सेवा की।

सेना में जाने की बेटे की चाह

वर्ष 1988 में श्यामवीर सेना में शामिल हुए थे। कारगिल युद्ध के बाद तीन माह दक्षिण अफ्रीका, सिक्किम, फिरोजपुर पंजाब में भी तैनाती रही। वहीं वर्ष 2008 में सांबा, पठानकोट से सेवानिवृत्त हुए। परिवार में तीन बेटी अंजू, मोनिका व गुलशन हैं। वहीं बेटा विकास इंटरमीडिएट पास कर सेना में जाना चाहता है। वह कहता है कि पिता की तरह वह भी देशसेवा करना चाहता है।


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