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सरकारी खजाना लूट अंग्रेजों को उतारा था मौत के घाट

विष्णु भूषण मिश्र रसूलाबाद (कानपुर देहात) वर्ष 1857 में मंगल पांडेय के क्रांति का बिगुल फूं

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Aug 2020 11:37 PM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 06:04 AM (IST)
सरकारी खजाना लूट अंग्रेजों को उतारा था मौत के घाट
सरकारी खजाना लूट अंग्रेजों को उतारा था मौत के घाट

विष्णु भूषण मिश्र, रसूलाबाद (कानपुर देहात)

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वर्ष 1857 में मंगल पांडेय के क्रांति का बिगुल फूंकने के बाद देश भर में अंग्रेजों की खिलाफत शुरू हो गई थी। रसूलाबाद रियासत में भी आजादी की भावना अंगड़ाई लेने लगी। राजा दरियावचंद्र अपनी फौज लेकर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में कूद पड़े और सरकारी खजाना लूटकर कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था। बौखलाए अंग्रेजों ने राजा को बागी घोषित कर तहसील में ही सार्वजनिक तौर पर फांसी दे दी थी। राजा के शहीद होने पर अंग्रेजों के खिलाफ आम जन बगावत पर उतर आए थे।

राजा दरियावचंद्र सकर्सी महल के राजा सूर्यचंद्र के छोटे पुत्र थे। बड़े भाई लायकचंद्र के निधन के बाद उन्होंने राजगद्दी संभाली और रसूलाबाद के नार खुर्द को अपनी राजधानी बनाई। समीप में भवनपुर में एक महल का निर्माण करा वह रहने लगे। उसी समय पहले स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगी तो राजा भी आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई व बिठूर के नाना साहब के संपर्क में आकर अंग्रेजों से मुकाबले की योजना बनाई। उसी दौरान योजनाबद्ध तरीके से उन्होंने रसूलाबाद तहसील के खजाने को लूट लिया व कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया। तहसील का फाटक और खजाने का दरवाजा बतौर स्मृति आज भी यहां मौजूद है। घटना के बाद बौखलाए अंग्रेजों ने उन्हें बागी घोषित करते हुए जिदा या मुर्दा पकड़ने के आदेश दिए। कुछ दिन बाद पकड़े जाने पर उन्हें तहसील परिसर में नीम के पेड़ से लटका कर फांसी दे दी गई और उनकी रियासत जब्त कर ली गई। राजा के वंशज सतीशचंद्र सिंह कहते हैं कि आज भी हर स्वतंत्रता दिवस को लोग राजा को याद कर उन्हें नमन करते हैं। अब किले के अवशेष ही बचे हैं जिन्हें सहेजने की कोशिश हो रही है।


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