स्वतंत्रता के सारथी : शिक्षा के आंगन में संस्कारों की पाठशाला
जागरण संवाददाता कानपुर देहात संस्कार बिना मनुष्य पशु के समान है। इसे जीवन का सूत्र बनाते ह
जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : संस्कार बिना मनुष्य पशु के समान है। इसे जीवन का सूत्र बनाते हुए एक शिक्षिका ने बच्चों को पढ़ाई के साथ संस्कारवान बनाने का भी जिम्मा उठा लिया है। झींझक के सिकहैला गांव में प्राथमिक विद्यालय में तैनात शिक्षिका सोमिल पोरवाल पढ़ाने के अलावा रोजाना एक घंटे संस्कारशाला चलाकर भारतीय संस्कृति का ज्ञान देकर समाज में रहने का सलीका सिखातीं हैं।
सोमिल कहतीं हैं कि हम अपनी संस्कृति को जाने, बड़ों का सम्मान करें, सभी के प्रति आदरभाव रखें, यही सब तो संस्कार सिखाता है। वे कहानियों और उदाहरणों के माध्यम से बच्चों को नैतिक मूल्यों से अवगत करातीं हैं। उनकी पाठशाला में बच्चों को सुबह जल्दी उठकर भगवान को याद करने, मां धरती को प्रणाम करने, स्कूल आने से पूर्व माता-पिता व घर के बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेने, सभी धर्म एक समान है और इनका सम्मान करना चाहिए जैसी कई बातों का ज्ञान देतीं हैं। वे बच्चों को खाने से पहले साबुन से हाथ धोने, दिन में दो बार ब्रश करें, नाखून काटकर रखें व कपड़े साफ सुधरे पहने आदि की बातें भी सिखातीं हैं। संस्कार शाला में सीखीं बातों का सकारात्मक असर बच्चों के व्यवहार में होता देखकर अभिभावक सोमिल को धन्यवाद देते हैं।
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बच्चों के लिए बनवाया फर्नीचर
सोमिल ने जब स्कूल में बच्चों को टाट पर पढ़ते देखा तो उनसे रहा न गया। बच्चे कुर्सी-मेज पर बैठकर पढ़ सकें, इसलिए उन्होंने अपने खर्च पर स्कूल में फर्नीचर बनवाया।