मानव जीवन जीने की कला बताती है श्रीराम कथा
संवाद सहयोगी रसूलाबाद श्रीराम कथा केवल एक कथा नहीं है बल्कि यह जीवन जीने की कला इंसान
संवाद सहयोगी, रसूलाबाद : श्रीराम कथा केवल एक कथा नहीं है बल्कि यह जीवन जीने की कला इंसान को सिखाती है। जीवन के हर पहलू का इसमें प्रसंग मिल जाएगा। यह बातें श्रीधर्मगढ़ बाबा वार्षिकोत्सव के तृतीय दिवस को श्रीराम कथा में आनंद कमल महाराज ने कही। उन्होंने बताया कि एक बार भगवान शंकर माता सती के साथ श्रीराम कथा श्रवण करने के लिए कुंभज ऋषि के पास पहुंचे। जहां ऋषि कुंभज ने भगवान शंकर को राम कथा श्रवण कराते हुए बताया कि राम कथा में परमानंद की प्राप्ति होती है। उन्होंने बताया कि राम कथा श्रवण करने के बाद भगवान शंकर कैलाश पर्वत की ओर माता सती के साथ जा रहे थे तभी उन्होंने देखा की प्रभु श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ माता सीता की खोज कर रहे हैं। भगवान शंकर ने प्रभु श्री राम को मन ही मन प्रणाम किया तो माता सती के मन में मनुष्य की भांति स्त्री के विरह में व्याकुल भगवान राम को देखकर शंका हुई। तब वह माता सीता का भेष बनाकर प्रभु श्री राम के सामने पहुंच गई। माता सती को सीता के स्वरूप में देख प्रभु श्रीराम ने प्रणाम किया और भगवान शंकर के बारे में पूछने लगे जिससे लज्जित सतीजी वापस शंकर जी के पास पहुंची और माता सीता का वेश धारण करने के कारण भगवान शंकर ने सतीजी को वामांग आसन न देकर अपने सम्मुख आसन देते हुए परीक्षा लेने का कारण पूछा। इसके बाद बिना बुलाए सतीजी अपने मायके राजा दक्ष के यज्ञ समारोह में पहुंची यहां भगवान शिव का अपमान देख उन्होंने क्रोध में आकर आत्मदाह कर लिया। तब कुपित भगवान शिव ने दक्ष यज्ञ का अपने गणों से विध्वंश करवा दिया।