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तालाब बना स्कूल, बच्चे आठ और शिक्षक दो

स्कूल परिसर में तालाब जैसा नजारा स्कूल में मात्र आठ बचे पंजीकृत अधिकांश खाली रहती कक्षाएं कोई पढ़ने आता ही नहीं

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 12:55 AM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 06:07 AM (IST)
तालाब बना स्कूल, बच्चे आठ और शिक्षक दो
तालाब बना स्कूल, बच्चे आठ और शिक्षक दो

संवाद सूत्र, मूसानगर: करीब एक करोड़ का भवन और खेल मैदान की तरह लंबा चौड़ा स्कूल परिसर है। पुरंदर में करीब सात कमरे में संचालित हो रहा राजकीय उच्चतर माध्यमिक स्कूल में मात्र आठ बच्चे पंजीकृत हैं। इन्हें पढ़ाने के लिए तीन कर्मचारी तैनात हैं। वह बात अलग है कि यहां बच्चे आते ही नहीं। अधिकांश क्लासों में सीट बेंच तो हैं, लेकिन धूल की परत देखकर अंदाजा लग जाता है कि यहां स्कूल का सारा काम फाइलों में अपडेट हो रहा है। न तो स्कूल में बच्चों को पढ़ने आने की रुचि है और न ही यहां तैनात कर्मचारियों को माथापच्ची करने की जरूरत है।

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दूर से क्या नजदीक आकर भी स्कूल का भवन शानदार ही नजर आता है। हां, परिसर में आते ही मन गवाही नहीं करता कि यहां बच्चे पढ़ते भी हैं या गुरु जी कमरों में होंगे। स्कूल परिसर तालाब की तरह लबालब है। कमरों में खाली कुर्सी, बेंच सालों से धूल से लिपटी हुई हैं। इन खाली कमरों का सन्नाटा तोड़ते एक कमरे में दो जन दिखते हैं। पूछने पर पता चला इनमें एक लिपिक दूसरे सहायक अध्यापक हैं। ग्राम पुरंदर में संचालित राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की यह तस्वीर शिक्षा की असलियत जानने के लिए बानगी के तौर पर काफी है।

ग्राम में 2009 में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय खोला गया था। विद्यालय का भवन गांव के पूर्व दिशा में बनाया गया था, जिसमें शिक्षण के लिए चार कमरे तथा एक प्रधानाचार्य कक्ष एक शिक्षक का कंप्यूटर कक्ष है। विद्यालय में तैनात प्रधानाचार्य समेत कर्मचारियों की उदासीनता के चलते विद्यालय आंसू बहा रहा है। विद्यालय में खेलने के लिए बच्चों का मैदान है। वहां वर्षा का कीचड़ युक्त बदबूदार पानी भरा है। स्कूल के समय विद्यालय में तैनात सहायक अध्यापक अवधेश कुमार ने बताया कि प्रधानाचार्य कल्पना शुक्ला जिला मुख्यालय किसी काम से गई हैं। लिपिक हरिओम शुक्ला अभी आए नहीं हैं। कई कमरों में ताला लगा था। एक कमरा खुला था वह भी खाली था। उन्होंने बताया कि कक्षा नौ में छह छात्र और कक्षा 10 में दो छात्र अंकित हैं। कोई बच्चा विद्यालय में उपस्थित नहीं था। गांव के बाबू सिंह, शेर बहादुर, रामपाल आदि ने बताया कि विद्यालय में तैनात शिक्षकों की उदासीनता के चलते विद्यालय बच्चे नहीं जाते हैं। रोजाना का यही हाल है कभी सहायक नजर आते हैं तो कभी प्रधानाचार्य। हमारे गांव से कमोबेश 400 बच्चे दूसरे गांव में पढ़ने के लिए जाते हैं। गांव में खुला विद्यालय हम लोगों के लिए कुछ भी फायदे का साबित नहीं हो रहा है। जिला विद्यालय निरीक्षक अरविद कुमार द्विवेदी ने बताया कि हमें ऐसी जानकारी मिली है कि कुछ अध्यापक शासन द्वारा मिलने हैं अध्यापकों की संख्या बढ़ने पर गांव की शिक्षा व्यवस्था में सुधार किया जाएगा।


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