कभी क्षेत्र की पहचान थे, आज अस्तित्व खतरे में
जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : जल ही जीवन है, इस अवधारणा को आत्मसात करते हुए पूर्वजों ने जल को धार्
जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : जल ही जीवन है, इस अवधारणा को आत्मसात करते हुए पूर्वजों ने जल को धार्मिक आस्था से जोड़कर संरक्षित करने की योजना बनाई थी। उनकी यही सोच रही होगी कि आस्था से जुड़ने से शायद आने वाली पीढ़ी तालाबों के अमूल्य खजाने यानि पानी को संरक्षित रखेगी लेकिन आज पूर्वजों की इस अवधारणा को लोग भूल रहे हैं। क्षेत्र को पहचान देने वाले प्राचीन वास्तुकला की धरोहर व जल संरक्षण के ऐतिहासिक सरोवर अनदेखी के चलते दुर्दशाग्रस्त हो अस्तित्व खोते जा रहे हैं।
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अव्यवस्था ने छीनी कलारन तालाब की निर्मलता
अकबरपुर में 160 फीट लंबे व 70 फीट चौड़े ऐतिहासिक कलारन तालाब का निर्माण करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व छब्बा कलार ने कराया था। इसका उल्लेख 1878 में प्रकाशित एफएन राइट की पुस्तक स्टेटिकल एंड हिस्टोरिक एकाउंट तथा माउंट गोमरी के गजेटियर में भी है। मौजूदा समय नगर के कई मोहल्लों का गंदा पानी तालाब में डाला जा रहा है। आसपास जमा कूड़े से पानी प्रदूषित हो गया है। सौ वर्ष से अधिक पुरानी रामलीला भी इस तालाब में होती है। बीते वर्ष नगर पंचायत प्रशासन ने बस्ती के दूषित पानी को रोककर नगर के बाहर ले जाने की कार्ययोजना बनाई थी, लेकिन इस पर अमल न होने से लोगों में नाराजगी है।
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ऐतिहासिक शुक्ल तालाब पर भी संकट
अकबरपुर स्थित मुगलकालीन शुक्ल तालाब वास्तुकला का नायाब नमूना व पुरातत्व विभाग की धरोहर होने के साथ जल संरक्षण का प्रमुख केंद्र है। 1563 ईस्वी में अकबर के शासन काल में दीवान शीतल प्रसाद शुक्ला व आमिल नत्थे खां ने अकाल पड़ने पर राजस्व धन से तालाब का निर्माण कराया था। धन हड़पने की शिकायत पर बादशाह अकबर ने आकर हकीकत देखी तो झूठी शिकायत करने वाले को मौत की सजा दी थी। आजादी के सेनानियों की कुर्बानी का मूक गवाह व निर्माण से अब तक जल संजोये तालाब अब पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है। ऐतिहासिक महत्व के तालाब के सुंदरीकरण का काम पिछले साल नगर पंचायत द्वारा शुरू कराया गया था। तालाब परिसर की बांउड्रीवॉल भी बनवाई गई, लेकिन पुरातत्व विभाग की शर्तों से काम अधूरा रह गया।
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आस्था का केंद्र पौराणिक देवयानी सरोवर
मूसानगर में राजा ययाति द्वारा बनवाया गया पौराणिक तालाब न केवल जल संरक्षण का परिचायक है बल्कि यमुना के उत्तर गामिनी होने के कारण छोटी गया यानि मातृ गया के रूप में मान्यता है। पितृपक्ष में बड़ी संख्या में लोग ¨पडदान के लिए आते हैं। मान्यता है कि पितरों की आत्मशांति व मोक्ष के लिए सरोवर में प्रथम ¨पडदान जरूरी है। करवा चौथ, रक्षा बंधन व पितृ पक्ष में मेले का भी आयोजन होता है। निर्माण से आज तक जलयुक्त रहने वाला यह तालाब बीहड़ क्षेत्र में जल संरक्षण का केंद्र है। तालाब में गिरने वाले नालों व अतिक्रमण से समस्या हो रही है।
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कागजों में खो गए 890 पुराने तालाब
हाईकोर्ट व शासन के निर्देश पर भी जल संरक्षण के प्रमुख स्त्रोत तालाबों से अवैध कब्जे नहीं हट पा रहे हैं। हालात यह है कि जिले के पुराने 890 तालाबों का अस्तित्व ही खो चुका है। अभिलेखों के अनुसार आधार वर्ष 1950 में 3996.645 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले 7927 तालाबों में इस समय 3334.773 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले 7037 तालाब ही शेष हैं जबकि 661.872 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले 890 तालाबों का पता नहीं है। इससे तालाबों को कब्जा मुक्त कराए जाने के अभियान पर सवालिया निशान लग रहा है।
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क्या कहते हैं जिम्मेदार
''अकबरपुर में गंदा पानी नगर से बाहर ले जाने की कार्ययोजना तैयार है। कलारन तालाब परिसर में अतिक्रमण चिह्नित कर प्रभावी कार्रवाई होगी। कालिका देवी मंदिर परिसर के तालाब में डाले जा रहे नगर के पानी को दूसरी ओर ले जाने तथा इसके सुंदरीकरण की कार्ययोजना तैयार है। बजट मिलते ही काम शुरू होगा। - देवहुति पांडेय, ईओ अकबरपुर
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''वर्तमान खतौनी में उपलब्ध 3334.773 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले 7037 में 10.128 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले तालाब ही उपलब्ध हैं। सर्वेक्षण में 312 तालाबों में कब्जे की जानकारी आने के बाद पिछले वर्षो में इन तालाबों के 29.805 हेक्टेयर क्षेत्रफल को कब्जा मुक्त कराया गया था। एंटी भू माफिया अभियान में भी सरकारी जमीनों, चरागाहों, तालाब सरोवरों में अवैध कब्जे की शिकायत पर कार्रवाई हो रही है।
- शिव शंकर गुप्ता, एडीएम प्रशासन